कविता

कविता

मजबूर मत करना किसी को इस दौर में
चाँदी के सिक्कों की खनक चलती है
वक़्त कहाँ है अब किसी के पास
यादों की सौगात क्यों मचलती है
उसूलों को तोड़कर चल दिये हैं
जिस ओर मयस्सर सूकून कहाँ
अकेले हैं सब इस जहाँ में अब
खिलखिलाहट कहॉं खिलती है
बेगाने लोगों की भीड़ में क्यों
याद करता है आज अपनों को
कहकहे लगाते अजनबियों के साथ
बोतलें आजकल सरेआम खुलती हैं
खामोश जुबान पर ताला लगा कर
चाभी खिलौना बन गयी
मसीहा बनने की आड़ में
मजबूरियाँ ओस में क्यों पिघलती हैं
— वर्षा वार्ष्णेय 

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017