कविता

गीता विजय उद्घोष

कृष्ण की गीता पुरानी हो गई है,
या कि लोगों की समझ कमजोर है।
शस्त्र एवं शास्त्र दोनों हैं जरूरी,
धर्म सम्मत कर्म से शुभ भोर है।।
था करोड़ों सैन्य बल, पर पार्थ में
परिजनों के हेतु भय या मोह था।
कृष्ण को आना पड़ा गीता सुनाने,
सोचिए कि क्या सबल व्यामोह था!
वह महाभारत पसारा पाँव फिर से,
न्याय का दरबार लज्जित, मौन है।
चल रही धृतराष्ट्र दुर्योधन शकुनि की,
सोच,  पासे से बचा अब  कौन है!!
कृष्ण के बदले में गीता पथप्रदर्शक,
अब इसी को गुरु समझ उत्थान कर।
है सजा कुरुक्षेत्र परितः जिंदगी में,
भाग मत,ले शस्त्र,रण प्रस्थान कर।।
एक कर कर्त्तव्य, दूजे हक लिये,
याद कर गीता विजय उद्घोष को।
जिंदगी है नाम लड़ने का अवध,
त्याग माया, मोह को, मद रोष को।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन