अंधेरा क्यों है?
रोशन घरों के कोने में अंधेरा क्यों है
खुशियों में भी ग़म की परछाईं क्यों है?
मुस्कुराहट तो हर वक्त खिली रहती है होंठों पर
फिर भी चेहरे पर खुशी की झलक कम क्यों है?
ऐ आसमां तेरे दामन में है चांद सितारे सभी
फिर भी तेरा आंगन सूना-सूना क्यों है?
जिधर देखो उधर लोग ही लोग नज़र आते हैं
फिर भी आज हर इंसान तन्हा क्यों है?
इकठ्ठा तो कर ली है सारी सुख -सुविधाएं
फिर भी जिंदगी में इतनी बैचेनी क्यों है?
एक दिन खाली हाथ ही चल पड़ना हैं उस सफ़र पर
फिर भी मोहमाया की इतनी जकड़न क्यों है?
— विभा कुमारी “नीरजा”