कविता

आज इंसानियत हो रही तार-तार

आज  इंसानियत हो रही तार-तार
क्यों फल-फुल रहे हैं इतने दुराचार
इंसान खो रहा क्यों असल पहचान
मानवता दुखी है ये बना रहा हैवान

यह मानव ही तो कहलाता है महान
महानता हुई धूमिल सस्ती हुई जान
हो रही मानवता क्यों  अब शर्मशार
और इंसानों के हो  रहे टुकड़े हजार

कैसे  कर लेतें हैं कोई  ऐसा साहस
कायरता का करते हैं यह दुस्साहस
करते हैं शैतानी यह घिनौनी शरारत
यह  हैवानियत है इनको हैं लानत!!

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578