कविता

कोई बेचैन विश्व उनके है!

कोई बेचैन विश्व उनके है,
रहस्य उनका कहाँ समझे है;
दृष्टि उनकी है सृष्टि उनकी है,
फिर भी हैरान औ परेशान है!

गाल पिचके हैं बाल भूरे हैं,
बृद्ध हो के भी वे अधूरे हैं;
समझ ना पाए वे रचयिता को,
साधना शास्त्र और दर्शन को!

शस्त्र को समझते हैं सर्वोपरि,
बूझ ना पाते अस्त्र किनके वे;
बुद्धि उनकी है बोधि उनकी से,
जगत उनका है सोच उनकी से!

उनका अस्तित्व उन्हीं से उपजा,
उनका व्यक्तित्व उन्हीं से निखरा;
वे ही रक्षा किए रहे उनकी,
दीक्षा बिना ज्ञान आया नहीं!

तंत्र उनके है तंत्र उनके से,
यंत्र औ मंत्र रहे उनके हैं;
‘मधु’ मुसकाके उन्हें लखते हैं,
सुर मिला उनके उर में रहते हैं!

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’