गीतिका/ग़ज़ल

श्रद्धा क़त्ल कांड के संदर्भ में एक ग़ज़ल

बेशक़ीमत था ख़ज़ाना,  पास रखवाया ही क्यों
अपने दुश्मन को ख़ुशी का राज़ बतलाया ही क्यों?
मस’अला दिल का भी था, था आप पर हमको यक़ीं
तोड़ना ही था अगर तो दिल को बहलाया ही क्यों?
बस ज़रा-सी बात पर टूटी  है जिसकी रागिनी
वो तराना साथ मेरे प्यार का गाया ही क्यों?
सोचते हैं ज़ालिमाना आँखें उठती देखकर
लाज का पर्दा नज़र से हमने सरकाया ही क्यों?
छोड़ना ही था अकेला जब भँवर में मुझको तो
मेरी किश्ती को किनारा उसने दिखलाया ही क्यों?
खोखले थे जिसके वादे, जिसने पल-पल छल किया
सायबां समझा उसे क्यों, ऐतबार आया ही क्यों
— पूनम माटिया
बेशक़ीमत-अनमोल
मसअला-क़िस्सा, मुद्दा, मामला
सयाबां-छायादार वृक्ष, केअर करने वाला
ऐतबार-विश्वास

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]