व्यस्त हर देखने में है हर कोई!
व्यस्त है देखने में हर कोई,
जाल पत्रों में विचरी दृष्टि रही;
गोद में सारा विश्व पसरा रहा,
गुदगुदा गुनगुना है कानों रहा!
गाँव की बातें पहले काफ़ी थीं,
संदेशे कभी-कभी आते थे;
आग लगने पै भागे जाते थे,
चीख सुन दौड़े तुरत आते थे!
आज पढ़ लेते कहाँ क्या है हुआ,
सुनके हर दर्द ख़ुशी मन झुलसा;
हुलसा उर कभी रहा वह तलखा,
हाल हर का रहा कभी तड़पा!
साधना करते नहीं बस लखते,
बात बिन वात में रहे आते;
असलियत कहाँ हैं समझ पाते,
दृष्टि औरों की हैं जगत तकते!
अधिक भी देखना नहीं अच्छा,
आत्म जा परखना सहज सच्चा;
करना ‘मधु’ कर्म धर्म पथ चलना,
ध्यान जा उनसे मिल मर्म चखना!
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’