कविता

शास्त्र उनके हैं शस्त्र उनके हैं!

शास्त्र उनके हैं शस्त्र उनके हैं,
शरीर प्राण प्रण उन्हीं के हैं;
तान उनकी में सभी चलते हैं,
भान उनके ही भाव ढ़लते हैं!

तीर उनके हैं धनुष उनके हैं,
मनुज उनके हैं मान उनके हैं;
महाभारत कराए उनके हैं,
पार्थ औ पाण्डव उन्हीं के हैं!

युद्ध अर्जुन है कहाँ कर पाता,
सुने गीता ही खड़ा होपाता;
लड़ाना कब नहीं लड़ाना है,
मात्र केशव के मन की लीला है!

करना क्या है किसी को क्या कहना,
सुनते बस उन्हीं की बात रहना;
मिला निर्देश उर में जो उनसे,
यंत्र बन उनका वही कर देना!

कहाँ वे रखते शस्त्र शास्त्र निकट,
प्रकट हो जाते वे जहाँ चहते;
सुदर्शन चक्र चला वे जब-तब,
निदेशन ‘मधु’ जगत का करते हैं!

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’