ग़ज़ल
तोहमतें लग रहीं सबेरों पर ।।
कुछ मेहरबान हैं अंधेरों पर ।।
जोर देखेंगे अब हवाओं का
रख दिए हैं दिये मुंडेरों पर ।।
धन की मादकता का असर अक्सर
चढ़ ही जाता है नव कुबेरों पर ।।
सर्प पलते हैं आस्तीनों में
और इल्जाम है सपेरों पर ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त