गीत/नवगीत

कब ये दूरी हो गई

पास रहते  ना  जाने  कब  ये दूरी  हो गई
ना जाने क्यूँ ये कहानी फिर अधूरी हो गई
समय के फेरों में  न जाने  फंसते  ही  गये
फंसा   क्या  कहें   उसमे  धंसते   ही  गये
छल के दलदल  से मुझपे  कीचड़  उछाले
जो आजतक न  जाने क्यूँ  नही धुलते गये
धूप पड़ी पुरानी धूल पे वो  सुनहरी हो गई
घाव  भरने  थे  पर  क्यू  वो  हरी  हो   गई
पास रहते  ना  जाने  कब  ये दूरी   हो  गई
ना जाने क्यूँ ये कहानी फिर अधूरी  हो गई
मोम सा दिल  उसका कैसे  पत्थर बन गये
पिया अमृत प्यार  का कैसे  जहर बन  गये
हाँथ थामे  फिरते  कहती  जन्मों तक रहंगे
ना जाने  पगली  का  प्यार  कहर  बन गये
बरपाती प्यार का कहर कैसे अधूरी  हो गई
आधे हम हो गए वो  पूरी  की  पूरी   हो गई
पास  रहते  ना  जाने कब  ये  दूरी   हो  गई
ना जाने क्यूँ  ये कहानी  फिर अधूरी हो गई
मिले दिल से दिल तो दिल के पनाह बन गये
कागज और कलम ये कैसे  गवाह  बन  गये
रचा खेल खेला जिसने प्रेम को  खेल समझ
गुनाह कर  के  वो तो फिर  बेगुनाह  बन गये
सबके सामने वो  गुनाहगार कैसे बरी हो गई
ख्वाहिश तो है अधूरी फिर कैसे पूरी  हो  गई
पास  रहते  ना  जाने  कब  ये  दूरी   हो  गई
ना जाने क्यूँ  ये  कहानी  फिर  अधूरी हो गई
— सोमेश देवांगन

सोमेश देवांगन

गोपीबन्द पारा पंडरिया जिला-कबीरधाम (छ.ग.) मो.न.-8962593570