घेरा
घेरा तो आखिर घेरा है,
हसरत का हो या बेरुखी का,
वफा का हो या बेखुदी का,
प्यार का हो या तिरस्कार का,
काम या व्यापार का,
पुष्पों का हो या कंटकों का,
खुशियों का हो या गमों का,
आशा का हो या निराशा का,
या कि गरीबी-अमीरी की परिभाषा का.
घेरा तो घेरा होता है,
किस्मत का फेरा होता है,
न तेरा होता है, न मेरा होता है,
घेरा तो आखिर घेरा ही होता है.