सावन मैं तेरे नाम लिखूं
गीत लिखूं या प्रीति लिखूं
तुमको भाए तो मीत लिखूं
बस जाओ यदि मेरे मन में
फिर तुमको मैं मनमीत लिखूं।
तुम सृजन बनो मैं सृजनकार
लिखना हो जाए फिर साकार
तुम शब्द पटल बन जाओ यदि
तुमको कविता का भाव लिखूं।
सब छंद सोरठा दोहा अब
श्रृंगार तुम्हारे नाम लिखूं
तुम बनो साक्षी इस पल का
हर पल मैं तेरे नाम लिखूं।
सारी ऋतुओं की परिभाषा
परिभाषित मैं कर सकता हूं
तुम प्रेम ऋतु बन जाओ यदि
अभिलाषा तेरे नाम लिखूं।
बारिश की रिमझिम बूंदों का
सौंदर्य अलंकृत कर दूंगा
तुम खुशियों के आंसू दे दो
सावन मैं तेरे नाम लिखूं।
— विजय कनौजिया