सोनपुर का मेला
सोनपुर का मेला जो कभी आजादी की योजना-स्थल के रूप में जाना जाता था, अब से आवाज दबाने के रूप में जाना जाएगा। जब कभी रिजनीति लड़खड़ाती है तो साहित्य आगे बढ़कर उसे थाम लेता है, वाला युग समाप्त हो रहा है। अब तो दोनों लड़खड़ा रहे हैं और दोनों एक-दूसरे से गुत्थम गुत्थ कर रहे हैं। ….सम्हालने के लिए नहीं, भ्रूण हत्या के लिए, समूल नाश के लिए। समाज का तथाकथित सचेतक वर्ग हाथ में तराजू लेकर निजी लाभ-हानि का अंदाजा लगा रहा है। पूरी तरह आश्वस्त हो जाने पर ही बोलना है या चुप रहना है, सुनिश्चित करेगा निजी हित के परिमाण और दिशा पर। अम्बर को दिगम्बर करने की चाहत आपको फर्जी विश्वविजेता सिकन्दर नहीं बल्कि हारा हुआ असहाय सिकन्दर बनाकर मार डालेगी।
— डॉ अवधेश कुमार अवध