कविता

हम भेड़ हैं

हाँ, हम भेड़ हैं
हमारी संख्या भी बहुत अधिक है
सोचना-विचारना भी हमारे वश में नहीं
न अतीत का दुःख न भविष्य की चिंता
बस वर्तमान में संतुष्ट
क्रियाशील, लगनशील, अनुगामी
अगुआ के अंध फॉलोवर
अंध भक्त, अंध विश्वासी
अनासक्त संन्यासी
क्योंकि हम भेड़ हैं।
हाँ, हम भेड़ हैं
किंतु
खोज रहे हैं उस भेड़िये को
उसके साथ मिले गड़ेरिये को
जो लाया था-
भेड़ की खाल में भेड़िया
हाय रे! छली-कपटी गड़ेरिया
दोनों ने किया था वादा
लेकर थोड़ा, देंगे ज्यादा
अबकि जाड़े में लाएँगे कंबल
हमारी समस्याओं का निकालेंगे हल
बदले में चाहिए
हमसे थोड़े-थोड़े बाल
हम सबको मिलेगी एक-एक शाल
हम अपने गड़ेरिये की बात में आ गए
बहुरुपये भेड़िये को देख
जज्बात में  धोखा खा गए।
चिल्ला जाड़ा पड़ रहा है
न कंबल, न शाल
बुरा है हमारा हाल
हमारी संख्या भी पहले से कम है
शायद भेड़िये ने दो-चार को मार खाया
तभी तो साल भर में
एक बार भी यहाँ नहीं आया
अब
गड़ेरिया फिर आ रहा है हमारी ओर
किसी दोपाये को लेकर
नये कलेवर में
बचकर रहना होगा री हमारी भेड़ें
पर क्या करें!
हम भेड़ हैं
हाँ, हम भेड़ हैं।
— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन