ग़ज़ल
तेरी पलकों का हर आंसू हथेली में छुपा लूं आ
तुम्हारे दर्द को मैं अपने कलेजे से लगा लूं आ
बहुत काटी है रो रो कर तुमने रातें अकेले में
सुना कर गीत कोई मैं तुमको सुला लूं आ।
नई कोई बात छेड़ो तुम नई को बात हम छेड़े
वो जो दर्द में गुज़रे वो सारे पल भुला दूं आ।
तेरी मुशकान ही मेरे लिए अनमोल है जाना
तेरी खुशी के लिए दांव पे सब कुछ लगा दूं आ।
तेरे क़दमों में जन्नत है मुझे महसूस होता है
तेरे क़दमों तले मैं ये अपना दिल बिछा दूं आ।
सलामत तुम रहो सलामत हो तेरी खुशियां
दिल कह रहा है मैं तुम्हें दिल से दुआ दूं आ।
कोई रिश्ता नहीं अपना मगर एक डोर लिपटी है
हमारे कौन हो जानिब चीर के दिल दिखा दूं आ।
— पावनी जानिब