वॉकिंग का दिखावा न करें वरना…
जब से खान-पान पर से नियंत्रण हटा है, जीभ के स्वाद के फेर में सब कुछ इतना अधिक भीतर जा रहा है कि पेट पेटी या कचरा पात्र हो गया है तभी से शरीर में बढ़ती जा रही अनावश्यक चर्बी के भार को उतारने के लिए वॉकिंग का शौक परवान चढ़ता जा रहा है।
एक आम आदमी तो दिन रात इतनी हाड़-तोड़ मेहनत कर ही लेता है कि उसे वॉकिंग की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन दिमाग के बूते कमा-खाने वाले, अपने आपको बुद्धिजीवी या कि प्रबुद्धजन मानने वाले और अभिजात्य वर्ग के लोगों के लिए स्वस्थ रहने शरीर को हिलाना-डुलाना बहुत जरूरी है।
पैदल चलना कितना जरूरी है इस बारे में सभी को पता है। पुराने जमाने के लोग पैदल ही चलते रहते थे और इसी वजह से इनकी आयु शतायु पार हो जाती थी पर अब ऐसा कहां रहा। लोगों के पांव जमीन पर ही नहीं पड़ते, पैदल घूमने की बात तो दूर है।
कई घण्टे कुर्सी, सोफासेट और पलंग में धंसे रहते हैं तो बाकी के घण्टे वाहनों में। ऐसे में कई लोग ऐसे हैं जो पैदल चलना तक भूल गए हैं और कईयों को प्रकृति ने पैदल चलना ही भुलवा दिया है।
आजकल वॉकिंग का शौक पांव पसारने लगा है। सिविल लाईन्स, पार्क हो या कोई सा पथ-पाथ। अथवा राजपथ से लेकर जनपथ तक और ख़ास पथ से लेकर आम पथों तक। बड़ी-बड़ी कॉलोनियों से लेकर राष्ट्रीय और राजमार्गों पर शाम को और सुबह वॉक करने वालों की भीड़ लगी रहती है।
वॉक करने वालों की भी अपनी-अपनी वेशभूषाएं हो गई हैं। इन आधी-अधूरी और अत्याधुनिक विदेशी परिधानों की नकल भरी वेशभूषाओं से ही जगता है वॉक का प्रबल आत्मविश्वास और मिलती है वॉकिंग इनर्जी।
वॉकिंग का यह फोबिया आजकल हर आयु वर्ग के लोगों पर सब तरफ सर चढ़कर बोल रहा है। घण्टा-आधा घण्टा वॉकिंग और दिन भर वॉकिंग रूट का बखान। वॉकिंग करें, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन वॉकिंग करने वाले अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं है कि वे जिस तरह की वॉकिंग कर रहे हैं उससे उनकी सेहत की सुरक्षा तो दूर की बात है, उनके और मौत के बीच का फासला निरन्तर कम होता जा रहा है।
वॉकिंग की इस अत्याधुनिक फैशन का असर गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों तक में पाँव पसारता जा रहा है। शहरों में वॉकिंग करने वाले अधिकांश लोग मुख्य मार्गों के किनारे वॉकिंग में रमे रहते हैं।
कई बार तो वॉकिंग करने वालों का इतना अधिक हुजूम उमड़ पड़ता है कि बस देखने वाले देखते ही रह जाएं। पर इस भीड़ में सेे कोई यह नहीं जान पा रहा है कि इस तरह वॉंिकंग का कोई मतलब नहीं है। आधे से अधिक लोग केवल दिखाने भर के लिए वॉकिंग का सहारा ले रहे हैं ताकि आधुनिक दिखें और सभी को यह लगे कि वे स्वास्थ्य के प्रति कितने सजग हैं। वॉकिंग आजकल सेहत रक्षा की बजाय स्टेटस सिम्बोल होकर भी रह गया है। जो जितना बड़ा आदमी, वो वॉकिंग पर दिखेगा ही दिखेगा, चाहे उसके वॉक की आवश्यकता न हो।
वॉकिंग का मतलब शरीर को वॉर्म अप करने के साथ ही यह है कि फेफड़ों को इतना अधिक सक्रिय किया जाए कि पूरी क्षमता से साँस लें व छोड़ सकें ताकि ऑक्सीजन की अधिकाधिक मात्रा को अवशोषित कर शरीर में संचरित कर सकें और अधिक से अधिक परिमाण में कार्बल डाई ऑक्साइड़ बाहर निकलती रहे।
इसके लिए उन क्षेत्रों और मार्गों पर वॉकिंग की जानी जरूरी है जहाँ पेड़-पौधों की अधिकता हो, प्रकृति का खुला आंगन हो अथवा जिन रास्तों और बस्तियों में प्रदूषण न हो। लेकिन पिछले कुछ समय से वॉकिंग के मौजूदा दिखावटी फोबिया और फैशनपरस्ती भरे अंधानुकरण ने वॉकिंग के मूल उद्देश्य को ही मटियामेट करके रख दिया है।
सभी जगह वॉकिंग करने वालों में से काफी लोग सवेरे-शाम उन मुख्य मार्गों पर ही वॉकिंग करते दिखाई देते हैं जहाँ से वाहनों का आवागमन लगातार बना रहता है, धूल उड़ती रहती है और हवाओं में गैस, डीजल-पेट्रोल के धंूए का प्रदूषण पसरा रहता है। इन सभी रास्तों पर धूल-मिट्टी, रेत आदि के बारीक कण बिखरे होते हैं।
ऐसे में हवा चलने पर ये कण उड़ते रहते हैं और आँखों में गिरने के साथ ही श्वास के साथ फेफड़ों में जाते हैं। ऐसे में सभी मार्गों पर वाहनों की आवाजाही लगातार बनी रहती है और इससे धूल-मिट्टी और रेत के कणों के साथ धुंआ और दूसरी विषैली वायु भी शरीर में जाती है।
वॉकिंग करते समय श्वास-प्रश्वास बहुत अधिक तेज रहता है और इसकी गति बढ़ जाती है। इससे फेफड़े पूरे भरते और खाली होते रहते हैं। इस समय यदि शुद्ध हवा हो तो ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन शरीर को मिलती है लेकिन वॉकिंग के समय फेफड़ों का आकुंचन और विस्तार जल्दी-जल्दी और गहरा होने लगे तो ऐसे में गन्दे परिवेश और प्रदूषित हवाओं के बीच की जाने वाली वॉकिंग से फेफड़ों में ऑक्सीजन की बजाय धूल, धुंआ, मिट्टी और विषैली गैसें सामान्य से कई गुना ज्यादा मात्रा में शरीर में जाती हैं और इससे शरीर को घातक स्तर का नुकसान पहुंचता है।
इससे तो वॉकिंग न होती तो ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि ऐसे में फेफड़ों की गति और आयतन सामान्य रहता है। लेकिन इसकी बजाय वॉकिंग के समय यह गति बढ़ जाती है और फेफड़ों में अपेक्षाकृत ज्यादा अधिक और गहरे तक हवा भरती है।
यह हवा यदि शुद्ध न हो तो जीवन के लिए घातक हो सकती है। फिर वॉकिंग करने वालों में खूब सारे बातूनी हुआ करते हैं। इनके लिए मुँह से भी प्रदूषित वायु का भीतर आवागमन बना रहता है। मुँह अंधेरे आम रास्तों पर घूमना दुर्घटनाओं की दृष्टि से भी खतरनाक रहता है। कई बार रात के जगे हुए और शराब पीकर वाहन चलाने वाले चालक रास्ते चलते लोगों को भी कुचल कर आगे निकल जाते हैं। इस दोहरे-तिहरे घातक असर के बावजूद वॉकिंग करने वाले अपनी जिद पर अड़े रहें तो भगवान ही उनका मालिक है।
अपनी सेहत को संवारने और बीमारियों से दूर रहने के लिए जिन्हें घूमना जरूरी है वे आराम से वॉकिंग करें लेकिन उन्हें यह देखना चाहिए कि वॉकिंग करना कहाँ सुरक्षित है। वॉकिंग करने वालों को चाहिए कि वे वॉकिंग के प्रचार से बचें। लोगों को दिखाने और आधुनिक दिखने की होड़ वाली वॉकिंग न करें, क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें वॉकिंग हेतु मुख्य रास्ते चुनने पड़ेंगे तभी तो लोग देख पाएंगे कि ये वॉकिंग कर रहे हैं।
मुख्य मार्गों पर हम लोक दिखावन वॉकिंग करेंगे तो इसके सारे खतरे हमें ही उठाने होंगे, हमारी वॉकिंग देखने वालों को नहीं। वॉकिंग ऐसी जगह करें जहां का वातावरण बिल्कुल शुद्ध हो, कोलाहल न हो तथा वाहनों या बहुत लोगों की आवाजाही न हो।
वॉकिंग करते समय गहरे सांस लें तथा बातचीत पर पाबन्दी रखें। यह प्रयास होना चाहिए कि वातावरण की शुद्ध वायु अधिक से अधिक उनके फेफड़ों में जाए और शरीर से गन्दी वायु निकलती रहे। अच्छा हो यदि वॉकिंग उद्यानों, वन क्षेत्रों में हो।
शहर तथा इसके आस-पास के पांच-दस किलोमीटर की हवा प्रदूषित होती है और इसलिये शुद्ध और ताजी हवा के लिए शहर से कुछ दूर पहुंचकर वॉकिंग की जा सकती है। वाहन से वॉकिंग स्थल पहुंच जाएं और वहां जितना जी चाहे वॉकिंग करें, ताकि यह दिखावटी न होकर वाकई स्वास्थ्यरक्षक एवं स्वास्थ्यवर्धक वॉकिंग रहे।
वॉकिंग के समय मन ही मन यह अहसास होना चाहिए वायुमण्डल में व्याप्त दिव्य ऑक्सीजन फेफड़ों में भर रही है और इससे शरीर में दिव्यता आ रही है। ऐसा होने पर ही वॉकिंग का अपना मजा है।
असुरक्षित और दिखावटी वॉकिंग आत्मघाती है और इससे हमारे शरीर को जितना अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है, उसका अन्दाजा शौकिया वॉकिंग वाले, वॉकिंग फोबिया पीड़ित या इनकी तारीफ करने-कराने वाले नहीं लगा सकते। ऐसी वॉकिंग जल्द ही अस्पताल या यमराज के घर पहुंचा भी सकती है, इसका ध्यान रखें।
— डॉ. दीपक आचार्य