साधना रहस्य – नाम और मंत्र जप से पाएं संकल्प सिद्धि
हर व्यक्ति चाहता है आत्म शान्ति। इसके लिए वह लाख प्रयत्न करता है किन्तु मनः शान्ति उससे उतनी ही दूर भागती रहती है। मनः शान्ति के लिए मन की चंचलता का त्याग परम आवश्यक है।
संतोष और आत्मसंयम को धारण कर लिए जाने से मनःशान्ति के साथ ही जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करना सहज, सरल और आनंददायी हो उठता है। लेकिन यह सब साधारण बात नहीं है, न ही कुछ दिनों और माहों की। निरन्तर अभ्यास जरूरी है। इसके लिए मानसिक स्तर पर आत्मतुष्टि का भाव होने के साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा सर्वाधिक प्रभावी है।
ईश्वरीय श्रद्धा, प्रगाढ़ आस्तिकता और आध्यात्मिक भावभूमि से अपने संकल्पों को अच्छी तरह और स्थायी भाव के साथ सुदृढ़ बनाया जा सकता है। एक बार संकल्प के मजबूत होने के बाद तो उसके बल पर मनुष्य कुछ भी परिवर्तन लाने में समर्थ हो सकता है।
इसी रहस्य मात्र को जान लिए जाने के उपरान्त जीवन की दशा और दिशा दोनों ही बदल जाते हैं। बात चाहे ईश्वर को पाने की हो या किसी सिद्धि की, अथवा आत्म आनंद की। इन सभी के लिए रोजमर्रा की जिन्दगी में कुछ न कुछ समय एकान्त के लिए निकालने की आवश्यकता होती है।
इंसान चाहे तो यह कोई मुश्किल काम नहीं है। कुछ समय अवश्य ही निकाला जा सकता है ताकि उस शून्य काल का उपयोग अन्य दिव्य लोकों तक तरंगीय सम्पर्क के लिए हो सके।
व्यस्तता हर व्यक्ति के साथ रहती है लेकिन व्यस्तता के बीच हम थोड़े क्षण निकाल लें तो निश्चय ही स्वस्थ, मस्त और प्रसन्न रह सकते हैं।
कोई जरूरी नहीं कि कठोर साधना ही की जाए। जहां भी समय मिले, हम इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए सर्वश्रेष्ठ और आसान मार्ग है मंत्र जप। जितनी अधिक संख्या में मंत्र जप होंगे, उतना अधिक प्रभाव बढ़ता चला जाता है और इससे अपने शरीर के साथ एक आभामण्डल का निर्माण होता है जो हमेशा अपने साथ रहकर हमारे कर्मयोग को परिपुष्ट करता है और अन्य लोकों से सूक्ष्म संपर्क को स्थापित करने में सहायक होता है।
मंत्र जप से अपना सूक्ष्म शरीर ताकतवर होता है और इसमें रोगों तथा बाहरी आक्रमणों से लड़ने की जबरदस्त ताकत अपने आप विकसित होती चली जाती है। जितने अधिक मंत्रों का जाप होगा उतना ही सूक्ष्म शरीर के दिव्य आभामण्डल का प्रसार होगा और उसी अनुपात में हम दैवीय शक्तियों का उत्तरोत्तर अधिक घनीभूत अनुभव करने लगते हैं।
मंत्रों का जप केवल जिह्वा या मन से उच्चारण मात्र नहीं है बल्कि मंत्र जप से शरीर के भीतर के चक्र और अन्तस्थ नाड़ियों का स्पन्दन एवं जागरण भी होता है। इनके जागरण से शरीर निर्मल और दिव्य बनता है तथा इसी से रोगों से बचने और लड़ने की स्थितियां प्राप्त होती हैं।
अपने लिए यह बात सिर्फ कहने भर की है कि समय नहीं मिलता, व्यस्तता है आदि-आदि। ये सारे केवल और केवल बहाने भर होते हैं। लेकिन अपनी दिनचर्या पर गौर करें तो हम पाएंगे कि हमारे पास खूब सारा समय ऐसा होता है जिसका उपयोग हम कर सकते हैं लेकिन चंचल मन के पाश में जकड़े होने के कारण करते नहीं हैं।
जैसे कि हम किसी को लेने या छोड़ने बस या रेल्वे स्टेशन पर गए, बस-रेल पहुंचने में देरी हो, किसी दफ्तर में काम से गए और प्रतीक्षा करनी पड़े, मन्दिर गए हों, बस या रेल में सफर कर रहे हों या और ऐसे ही क्षण जब हमें प्रतीक्षा करनी पड़े। ऐसे क्षणों का उपयोग मंत्र जप में किया जाए तो इसका सीधा फायदा मिलेगा ही।
मान लो हम अपने निवास से गंतव्य अथवा लम्बी दूरी की यात्रा के लिए बस-रेल में निकलें और एक से लेकर कुछ घण्टे का सफर हो, तब फालतू की बातचीत में समय न गंवाएं, आंखें बंद कर मंत्र जप करते रहें। ऐसे क्षणों का उपयोग करते हुए लाखों मंत्रों का बैलेंस हम बना सकते हैं।
मंत्र ऊर्जा का यह संचय अपने बैंक बेलेंस से भी कई गुना प्रभावी है। मंत्रों की यही ऊर्जा शरीर को रोगों से तो बचाती ही है, आने वाले शुभाशुभ को कभी संकेतों और कभी स्पष्ट तरीकों से बता भी देती है। यह हमारे चित्त की निर्मलता, निष्कपटता और पवित्रता पर निर्भर है। जितना हम अधिक शुद्ध होंगे, उतने ही ज्यादा तरह से दैवीय संकेतों को स्पष्ट अनुभव करने लगेंगे।
जरूरी नहीं कि कोई बड़ा मंत्र लिया जाए, हमें जो भगवान पसन्द हों, उनका कोई सा छोटा मंत्र लेकर इसका जप शुरू कर दें। आम तौर पर वही देवी-देवता मनुष्य को प्रिय होते हैं जिनका पूर्व जन्मों में यजन, स्मरण और भजन किया होता है अथवा वंश और कुल परंपरा से चले आ रहे हों।
एक मंत्र को साधने मात्र से दूसरे सभी मंत्र स्वतः सिद्ध होने लगते हैं इसलिये एक मंत्र को अपनाएं और इसका जितना अधिक जप कर सकें, करें। यह मंत्र हमें निरोगी तो रखेगा ही, हमारे मन में जिस किसी काम का संकल्प उठेगा, उसे पूर्ण करने में भी मदद देगा।
फिर जिन दिनों साप्ताहिक अवकाश हो, लम्बे अवकाश हों, उन दिनों को साधना के लिए निकालें तथा घर में या किसी एकान्त स्थान या मन्दिर में जाकर निश्चित संख्या में जप कर लें।
जब किसी मंत्र का जप करें तब माला या मनके गिनने की बजाय इस बात पर ध्यान दें कि जिस देवता का जप हो रहा है, उसमें ही ध्यान लगा रहे। इसके लिए जप करते वक्त आंखों की दोनों भौंहों के बीच, जहां तिलक लगाते हैं, उस स्थान विशेष ‘आज्ञा चक्र’ में ध्यान करें।
आंखों व शरीर में कहीं भी लेश मात्र भी तनाव नहीं होना चाहिए, एकदम सहज होकर यह सब करें। जब मन में प्रसन्नता हो, तभी भगवान के जप या ध्यान करें। आज्ञा चक्र के भीतर रोशनी का बिन्दु है, इसी भावना को ध्यान में रखकर आगे बढ़ें।
ध्यान के वक्त ड्रीलिंग थैरेपी को अपनाएं यानि की जमीन से पानी निकालने जैसे मशीन से ट्यूबवैल खोदा जाता है, हैण्डपंप ड्रील होता है, उसके बाद पानी निकलता है। इसी प्रकार हम जब ध्यान करेंगे तो पहले पहल पंच तत्वों के अलग-अलग रंग, पहाड़, काले बादल या खूब पसरे हुए घने पहाड़ आदि के स्वरूप दिखने लगते हैं।
यह अपने पूर्वजन्मों की संचित स्मृतियां, पाप राशि या तामसिक स्थितियां हैं, ध्यान व एकाग्रता से मंत्र जप करते हुए इन काले पहाड़ों को पूरी संकल्प शक्ति और सकारात्मकता के साथ ड्रील करने का यह मानसिक अभ्यास जितना अधिक गहरा होता जाएगा, उतना ही आनंद के साथ आत्मतृप्ति का भाव और अधिक गहरा एवं स्थायी होता जाएगा।
तनिक सा भी ही ड्रील हो जाएगा तो हमें भीतर से आनंद प्राप्त होगा। मानसिक रूप से यह संकल्प बनाए रखें कि ड्रील करते हुए लगातार आगे बढ़ रहे हैं और आगे शुभ्र या नीला स्वच्छतम आकाश आने वाला है।
इस भावना से पूरी तन्मयता से यदि जप किये जाएं तो निश्चित ही दिव्य ज्योति व असीम आनंद का अनुभव होगा। ज्यों-ज्यों ध्यान बढ़ेगा, यह असीम आनंद और अधिक पसरता जाएगा और दिव्यत्व तथा दैवत्व का अनुभव स्वतः ही होने लगेगा।
एक बात यह अच्छी तरह स्मरण रखनी जरूरी है कि जिस किसी मंत्र को लाखों की संख्या में जप कर हो जाता है तब वह सूक्ष्म एवं दिव्य आकार ग्रहण लेता है और हमारे सभी प्रकार के संकल्पों को सिद्ध करने में समर्थ हो जाता है।
इस यात्रा के दौरान बीच में जब कभी सूर्य या चन्द्र ग्रहण आए तो ग्रहण काल में पूरे समय इसी मंत्र का जप कर लें तो इससे मंत्र सिद्ध हो जाएगा और इसके अद्भुत चमत्कारिक लाभ प्राप्त होंगे।
वर्तमान कलिकाल में भगवन्नाम जप अथवा मंत्र जप ही सर्वश्रेष्ठ, सरल और अचूक प्रभाव छोड़ने वाला मार्ग है, जिसका आश्रय ग्रहण कर लिए जाने पर संकल्प सिद्धि से सर्वस्व प्राप्त होने लगता है।
— डॉ. दीपक आचार्य