अपनेआप में ही सब मस्त है
दिखावे की अपनत्व है,
अपनेआप में ही सब मस्त है।
अपनी रोटी सब सेक रहा,
आज औरों की कहाँ फिक्र है?
हम ये करें हम वो करें,
हम ये बनें हम वो बनें।
हम कैसे धनकुबेर बनें,
आज इसी फिराक में लोग है।
लोग भूखा है तो भूखे मरे,
बस अपनी जेब भरती रहे।
लूटो और हकमारी करो,
पूँजीवाद की यही तो चलन है।
गरीब और गरीब हो रहा,
अमीरों की कट रही चाँदी है।
आम आदमी शोषित हो रहा,
असीमित मुनाफाखोरी है।
पढ़ा-लिखा बेरोजगार घूम रहा,
फिरभी शासक को मिल रही ताली है।
फाँसीवाद ने आज पैर फैलाया,
झूठा भी कहलाता सत्यवादी है।
अमरेन्द्र
पचरुखिया,फतुहा,पटना,बिहार।
(स्वरचित एवं मौलिक)