कविता
सब अपनी नाकामयाबी का दोष देते हैं किस्मत को,
कहते हैं ये किस्मत हमें बहुत सताती है,
हर पल मुझे दुख देकर रूलाती है
जबकि दोष किस्मत की नहीं होती
सारा दोष अपने कर्मों की होती है,
कर्म ही किस्मत की जन्मदाता है
कर्म के अनुरूप किस्मत बन जाता है।
मत ढूंढो किस्मत को हाथों की लकीरों में,
वो तो छुपा बैठा है आपके कर्मो की तस्वीरों में।
किस्मत, भाग्य, शायद और संयोग के
अंधविश्वास को अपने जीवन से बाहर भगाओ,
आत्मविश्वास, मिहनत, ईमानदार कर्मों को अपना साथी बनाओ
रच दो इतिहास अपने पक्के इरादों के साथ,
मिलेगी सफलता और फिर न करोगे खराब किस्मत की बात
— मृदुल शरण