गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभी इश्क़ ये नया – नया है, अभी सुनो झुक पलक रही है
अभी नशीले लगे नज़ारे, लबों से मय ही छलक रही है

अभी रहेगी चिलमन यूँ ही, इसे हटाओ नहीं सुनो तुम
चली हवा कुछ इसी तरह से, कि सिर से चूनर सरक रही है

भरी हुई दिल पली मुहब्बत, चढ़ी ख़ुमारी दिवानगी की
ये रूप की चाँदनी खिली है, पर आग दिल में दहक रही है

रुझान देखो यही हमारा, खिली रहीं मौसमी बहारें
पहन सके जो रिमझिम पायल, गुँजार करती छनक रही है

कशिश मिलन की रहे अधूरी, न काम ऐसा करो कभी तुम
अभी ये प्याले भरे नहीं हैं, पर चाल अब तो बहक रही है

लिखी रुहानी ग़ज़ल सुनो जो, मिलीं उसी से तमाम खुशियाँ
अमृत बनी ये निकल लबों से, हर महफ़िल में थिरक रही है

सुनो रही कर सभी इशारे, बनी हमारा वही तो गहना
बुझा सकी प्यास प्रीत बन कर, जो जीत बन कर खनक रही है

खुशी अभी तो हुई है जाहिर, गुँजित नगमा अभी हुआ है
( गजल हमारी बनी मुहब्बत, उसी की खुशबू महक रही है )

मधुर – मधुर जो बजी है बंसी, वही सुहानी सुनी अभी धुन
तभी बढ़ी है हृदय की धड़कन, मिरे भी दिल में धड़क रही है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’