छल कपट और पाप न कर बंदिया
वैश्विक स्तरपर इस सृष्टि में मानवीय जीव का उदय कब हुआ? शायद हम इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ होंगे, परंतु मेरा मानना है कि जिस तरह अनेकों पीढ़ियों से यह प्रवाह चलते आ रहा है और हमें भी हमारे बड़े बुजुर्गों, पूर्वजों से यह शब्द कहते सुनते आए हैं कि अभी कलयुग का जमाना आ गया है, पहले सतयुग था जहां सभी जीव सुखी सर्वसंपन्न थे, पुण्य ही पुण्य था, पाप का नामोनिशान ही नहीं था। परंतु आज कलयुग में पापों का बवंडर आ गया है, ऐसी अनेकों प्रकार की बातें हम अभी भी अपने बड़े बुजुर्गों से सुनते हैं। हालांकि उन्होंने भी उनका कुछ हिस्सा ही भोगा होगा और बाकी अपने पूर्वजों से सुना होगा, इस प्रकार एक दूसरे से इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी यह दास्तां चली आ रही है। हम अगर आज की स्थिति देखें तो वास्तव में पुण्य ऊपर पापों की भरमार हमें अधिक मिलेगी। शायद इसीलिए ही इस युग को कलयुग का नाम दिया गया है,क्योंकि आज की स्थितियों परिस्थितियों में पुण्य की अपेक्षा पापों की संख्या अधिक दिखती है। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, छल कपट पाप न कर बंदिया क्योंकि उनकी बुरीगत दुर्दशा दुखों के रूप में ब्याज सहित फ़ल उनके जीवनकाल में ही उन्हें वापस ज़रूर मिलता है।
साथियों बात अगर हम अपने व्यक्तिगत जीवन में झांक कर देखें तो हमारी आंख में कभी कोई तिनका या पैर में कांटा घुस जाता है, तो हमें कितनी तकलीफ झेलनी पड़ती है हम असहाय को उड़ते हैं,कभी-कभी मर्ग इतना बढ़ जाता है कि ऑपरेशन की स्थिति भी आती है इससे कहीं बढ़कर असहाय होकर आंख या पैर निष्क्रिय होने की भी संभावना हो जाती है। उसी तरह दबी हुई कपास में अगर आग लगे तो विभिशक्ता का अंदाजा लगा सकते हैं। अब हम इसका संज्ञान पाप की सजा को लेकर करेंगे तो फिर सिहर उठेंगे क्योंकि पाप करने वालों को उनकी बुरीगत दुर्दशा और दुखों के रूप में उन्हें इसी जीवनकाल में ब्याज सहित फल के रूप में जरूर वापिस मिलता है,जिसका मैंने खुदने ऐसे कई उदाहरण अपने शहर और बाहर में देखे हैं, इसलिए हमें इस बात को रेखांकित करने की ज़रूरत है कि जहां तक हो सके दिल में छिपे छल कपट और पापों से दूर रहकर सफ़ल जीवन जीने की प्रथा को प्रोत्साहित करें, पापों की व्याख्या हम नीचे के पैराग्राफ में अनेक सज्जनों की सोच को रेखांकित कर बता रहे हैं।
हम पापों की परिभाषा को देखें तो वह विस्तृत रूप में है, परंतु फ़िर भी कुछ ज्ञात गतिविधियां इस प्रकार है, पाप सबसे पहले मनुष्य की दृष्टि से प्रवेश करता है तत्पश्चात विचारों को मलिन करता है और उसके बाद चरित्र को दूषित कर देता है। पाप वह कृत्य हैं, जो हमे रोगी बनाते हैं, हमें दुख देते हैं, पीड़ा देते हैं, हमे या हमारे प्रियजनों को हिंसा का शिकार बनाते हैं, जैसे,आत्म-हिंसा, आत्म-हत्या की सोच हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, लूट, बेइज्जती मानसिक/शारीरक रोग,कष्टपूर्ण मृत्यु असहाय, भय-युक्त जीवन असुर/अमोक्ष मार्ग नशा करना, पर जीवों पर हिंसा मांसाहार, मार-पीट करना तामसिक आहार, गुरुओं, मिडिया के झूठ फ़रेब, मक्कारी पर विशवास फिजूल में भय करना राग, द्वेष, ईर्षा, क्रोध, अहंकार धन-पद-काम-मान का लोभरिश्वत लेना धोखा देना, अन्याय सहन करना गुलामी, किसी दीन दुखिया का दिल दुखाना पाप है, किसी ब्राह्मण का उपहास करना पाप है, अपने माता पिता को तकलीफ़ देना या अत्याचार करना पाप है, किसी बेजुबान जानवर को मारना पाप है ,छल, कपट करना ये पाप है। अबला नारी या अबोध बालक की हत्या करना पाप है,अपने फायदे के लिए देश या परिवार से गद्दारी करना पाप है,ऐसे बहुत सारे काम है जो पापो की श्रेणी में आते है।कर्म अच्छा करना चाहिए जिससे हमारे ना रहने से लोगो को हमारी कमी महसुस हो और दूसरो के लिए एक प्रेरणा बन सको।
इंसान दो चीज़ो से बना है एक जिस्म और दूसरा आत्मा यानी रूह। रूह एक ऐसी एनर्जी है जो इंसान को ज़िंदा रखती है जबकि जिस्म एक मोहताज चीज़ है जिसे समय के अनुसार अलग अलग चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है। इंसानी जिस्म में नफ़्स( इच्छा) पाई जाती है।इंसान पर शैतान पाप करने का वसवसा डालता है, तो नफ्स उस पाप की तरफ इंसान को धकेलता है जिस वजह से इंसान पाप करने लगता है।जिसको अपनी नफ्स(इच्छा) पर कंट्रोल इस कुछ और नहीं बल्कि ये है कि हमारे किसी काम से हमको ही या किसी को नुकसान पहुंचे, किसी के बहुत ही नेक विचार हैं।
हम खुद की करनी से संज्ञान लेकर ख़ुद पाप की व्याख्या करें तो, अपने द्वारा किये कर्म को ना पहचाना। अर्थात कुछ करना भी गलत है ओर ना करना भी गलत है। केवल सही जानकर करना ही सही है। जैसे किसान जो बोने की सोचेगा फिर वही कर्म करेगा यानी बीज बोएगा ओर उसे वही प्राप्त होगा। ऐसा नहीं है कि बोया बेर ओर कुछ समय बाद आम प्राप्त करने की सोचे। ऐसा मात्र सोचने से नया कर्म बन जाता है ओर पिछला जो प्राप्त होगा वह भी सुख नहीं देगा। जैसे कोई सोचता है ये कर्म वर्म कुछ नहीं होता मनुष्य जीवन मिला है जो चाहे वो करो। वो अज्ञानता में जो चाहे बोता जा रहा है। ओर उसको वही मिलेगा जो स्वयं उसने बोया है चाहे कितना भी उछलकूद कर ले। इसे ही किस्मत कहते हैं। इसे कोई बदल या मिला नहीं सकता। अन्य योनी भोग जुनी होती है वहां कर्म नहीं बनते। केवल मनुष्य योनी कर्म योनी है। इस योनी में हम अपनी किस्मत खुद लिखते हैं। इसलिए हम स्वयं ईश्वर है किसी का कोई ईटंरफेयर नहीं। हमारी छट्टी यानी छ दिन होते ही हमारी सुरति संसार में लग जाती है और हमको सठियाते ही हमारे कर्म स्टैंड बाई मोड में आ जाते हैं। अर्थात बीच का समय हमारा अपनी किस्मत लिखने का होता है। ये मनुष्य जन्म हमको इतनी आसानी से नहीं मिला हुआ है इतना आसान हमको केवल अहंकार व माया के द्वारा लग रहा है। जब ये चीजें हमसे दूर हो जाएगीं तो हमको ऐहसास होगा। जब हम स्टैडबाई मोड में होगें। तब ततक हम अपनी किस्मत /पटकथा लिख चुके होगें। उसी टाईम से हमको वही मिलना शुरू हो जाएगा जो हमने बोया है। पहले हमको सही मिलेगा फिर भी धीरे धीरे धीरे पतन होता चला जाएगा। जो कर्म शेष रहेगें वो हमारी अगली योनी तय करेगें जिसमे हम यह कर्म भोग सके। अब हम भगवान् पर दोष लगाकर ओर दण्ड के कर्म न बनाएं। ये सृष्टि का एटोमैटीक सिस्टम है जो अटल है। तन्त्र मन्त्र पाठ पुजा योग ध्यान शब्द ज्ञान सब समझने के लिए होते हैं। पाखडं करने के लिए नहीं। क्योंकि बनाने वाले से हम कभी बड़े व बुद्धिमान नहीं हो सकते। ऐसा सोचना हमारा मात्र भ्रम होगा। जब तक जवान है तब तक भ्रम होगा। यह किसी के सराहनीय विचार हैं।
हम पाप की व्याख्या अपने धर्म या कर्तव्यों से जोड़कर देखें तो, मेरे विचार में धर्म से आशय है हमारा कर्तव्य।उदाहरण के तौर पर एक पिता का अपनी बेटी के प्रति कर्तव्य, पुत्र का माता-पिता के प्रति कर्तव्य, पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति कर्तव्य, एक शिक्षक का अपने विधार्थियों के प्रति कर्तव्य, एक नागरिक का अपने देश के प्रति कर्तव्य, एक पीएम का अपने राष्ट्र और जनता के प्रति कर्तव्य, एक सैनिक का अपने देश के प्रति कर्तव्य, एक इंसान का दूसरे इंसान व पेड़ पौधों तथा प्रकृति के प्रति कर्तव्य, एक कामगार का अपने काम के प्रति कर्तव्य, एक विद्यार्थी का अपने विद्यार्जन, गुरुजनों और विद्यालय के प्रति कर्तव्य आदि। ये तो बात हो गई धर्म की, अब पाप या अधर्म की बात करते हैं, पाप/अधर्म समस्त ऐसे कृत्य हैं, जो हम अपने धर्म के विरुद्ध करते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरणका अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि छल कपट और पाप न कर बंदिया। आंख में पड़ा तिनका, पैर में घुसा कांटा,रूई में लगी आग से भी अधिक भयानक दिल में छिपे छल कपट और पाप है, ये करने वालों की बुरी गत,दुर्दशा,दुखों के रूप में ब्याज सहित फ़ल उनके जीवनकाल में ही जरूर मिलता है।
— किशन सनमुख़दास भावनानी