अपने कर्म से अर्जित किया, थोड़ा कीजिए दान।
प्रेम घट भीतर भर लीजिए ,हो खुशियों का भान।
जितनी जरूरत है आप को, उतना ही रखो पास,
जरूरतमंद की मदद करो, भलाई इस को मान।
चिड़ी चोंच भर जल ले गई, सरिता न घटियो नीर।
बहते नदी का पानी कभी, करता नहीं अभिमान।
है रोटी मिले दो वक्त की, यही जीवन आधार,
भूखे को भोजन दीजिए, मानिये उत्तम दान।
दिव्यांग उम्मीद लिए रहें, जीवन की नई भोर,
सहारा बन कर उन का चलें, भरें जीवन मुस्कान।
मदद दीन की करते रहो, जिन्हें मदद की आस,
दान दिये है धन नहीं घटे, कहते संत विद्वान।
मानव देह नसीब से मिली, करो सदा शुभ काज,
हो दान कर्म निज हाथ सदा, होते खुशी भगवान।
एक हाथ से देते समय, दुसरा हाथ हो शांत,
गुप्त दान मन से कीजिए, नहीं हो कभी गुमान।
— शिव सन्याल