कविता

प्रतिभा

प्रतिभा को करना है निखार
जाना है मंजिल के उसपार
आओ अपना नसीब चमकायें
सफलता को पाकर दिखलायें

उड़ जाना है परवाज बन नभ पर
मंजिल को पाना है नसीब से लड़कर
मिहनत को बनाना है    हथियार
ना रहना है बन कर हमें लाचार

बंद तकदीर की खोल दो ताला
पीना पड़े गर जहर का भी प्याला
हिम्मत को देता रह    सहकार
प्रतिभा से करना है अब प्यार

कोई जग में जटिल काम नहीं है
सफलता का ही नाम यहीं    है
मंजिल पर रखना है  हमें दीदार
चलो चाँद से उपर मंगल के पार

आओ प्रतिभा को हीर बनायें
मंजिल को अपना तकदीर बनायें
विषम हालात को करना है स्वीकार
प्रतिभा से ना करना इनकार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088