ख़्वाब के रास्तों नींद के दायरे में हाज़िर हूं,
मीठी नींद ,गहरी आंखों के दायरे में हाज़िर हूं।
रात की बारिश बादल के पानी में हाज़िर हूं।
आंसू हजार टूटे पलकों के दायरे में हाज़िर हूं।
अंधेरा,नींद की वादियां लॉरिया गाती मंद हवा,
सख्त बिस्तर के सिलवटों के दायरे में हाज़िर हूं।
बंध आंखों को चीर कर चुप चाप खड़ी थी नींद,
याद के जंगलों में बीते पल के दायरे में हाज़िर हूं।
नींद के तआक़ुब में दूर दूर तक ला-हासिल,
तिरा बिछड़ना, मेरे जागने के दायरे में हाज़िर हूं।
— बिजल जगड