कविता

बिर्हा

तुझ से साथ उम्र भर का में चाहता हूं , में क्या करूं, में सिर्फ तुम्हें चाहता हूं। भटकती रहती है रात भर आंखें दरबदर, घने जंगल मे,चराग को शब में जलाता हूं। ख़ूँ के आँसू याद तेरी रुलाती रही उम्र भर, ज़ख्म-ए-जिगर को फिर में समझाता हूं। दिल को झिंझोड़ते है सारे अज़ीज़ लफ़्ज़, […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – उक़्दा

चुपी सी लग गई दोनो की,बातें करते करते, बात छेड़ो कि गुजरे श्याम ,बातें करते करते। चश्म-ए-हैरत से देख रहा रहे है सारा जहाँ, दर्द की आवाज बे-आवाज़ी,बातें करते करते। सन्नाटा चीख रहा है तुम भी चूप हो , हम भी, लफ्ज़ों का दम टूट रहा है, बातें करते करते। अजब अश्कों की बारिश और […]

गीतिका/ग़ज़ल

घाव

हज़ार रंग में मुमकिन है यहां प्यार का इज़हार , मुंतजिर आंखों से शिदत ए गम का इज़हार। हजारों राते जागे,एक मौसम सदियों ठहर सके? फूल के पत्ते पर जख्म, लजरते होठों का इज़हार। यख बस्ता हाथ खामोश लबों पर एक कहानी, कुछ सुलगते नग़्मात, गम ए हालात का इज़हार। शाम ए जुदाई खुद को […]

गीतिका/ग़ज़ल

रोशनी

पाँव साकित हो गए किसी को देख कर, बिछाई चांद ने चाँदनी किसी को देख कर। वो एक शख्स जो दुआ सा लगने लगा है, चल पड़ा एक रास्ते किसी को देख कर। गम की रात इश्क़ में नक़्श-ए-जफ़ा न हो, दिलमें खलिश हो रही किसी को देख कर। ख़ुश्क गुज़रा ढूंढते तुमको अब के […]

गीतिका/ग़ज़ल

बोझ

ये शहर की सर्द राते और नींद का बोझ, ख्वाब जिंदगानी के ,और नींद का बोझ। ओस में भीगी तन्हाई,फूल नहीं खिले कुबूल हुई न दुआएं और नींद का बोझ। इन रगों में अब ना बची हुई है सांस, रेजों में बट गए है और नींद का बोझ। दिल -ए – वहशी की पुकार बढ़ती […]

गीतिका/ग़ज़ल

नूर

जागती आंख के सपने महोबबत के अल्फाज़ बुनेंगे, अखियाँ सुर्ख़ हो, चट से महोबबत के अल्फाज़ बुनेंगे। किस कदर तन्हा हुए है  हम इस शहर की भीड़ में देखो, ख़ुद से ख़ुद- नुमा होके, महोबबत के अल्फाज़ बुनेंगे। सुकून की रात ना लौटी दिल टूट ना जाए आरसी का, आईने अगर जगमगाए , महोबबत के […]

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

महापरिनिर्वाण पारलौकिक निःस्वार्थता

हम जो कुछ भी देखते या समझते हैं, वह एक सपने के भीतर सिर्फ एक सपना है।” ~ एडगर एलन पो । कर्म स्मृति का अवशिष्ट प्रभाव है। भौतिक दुनिया में आपका पुनर्जन्म आपके पिछले जीवन से आपकी स्मृति का अवशेष है, लेकिन एक बार जब वे एक नए जीवन में एक नया शरीर लेता […]

गीतिका/ग़ज़ल

ख़दंग

ये दिल है बेकरार सनम इधर तो देखो, क्या गज़ब करते हो सनम इधर तो देखो। गुजरती है मुझ में राते ख़दंग बनके देखो, क्या गज़ब करते हो सनम इधर तो देखो। इज़हार ए ख़ामोशी जाहिर का है ये पर्दा, क्या गज़ब करते हो सनम इधर तो देखो। विरान दिल से उम्मीद मौसम की ईद […]

गीतिका/ग़ज़ल

रख़्शंदा

एक मुद्दत से ना कोई खत है ना कोई पैगाम है, खून-ए-दिल आंखों से टपके ना कोई पैगाम है। मुझे अब ना चैन है ना आराम क्या अर्ज करूं? जज़्बे का परिंदा क्यों न तड़पे ना कोई पैगाम है। थरथराती डूबती शाम का अंजाम लिए फिरते रहे, तारों की निगाह नही चमकी ना कोई पैगाम […]

सामाजिक

अंत्येष्टि (अंतिम यज्ञ)

दाह संस्कार में, प्रतिरूप रूप को लेजा रहे धागे की ओर इशारा किया गया है और हमें ये सिखाया जा रहा है कि मिट्टी का खिलौना जैसा शरीर अंततः मिट्टी में ही विलीन हो जाएगा। पहले के जमाने में जिस आग से शादी-ब्याह होती थी, वही आग घर में सालों तक जलती रहती थी और जब […]