हर पत्ता यहाँ का सावन से डरा है
हर शहर यहाँ का क़ातिलों से भरा है
जो भी यहाँ मरा वो निग़ाहों से मरा है
तिरछे वार से वो सीधा मार देते!
हर पत्ता यहाँ का सावन से डरा है
हर गली हर मोड़ पे जलवा है कायम
शातिर बहुत हैं वो जो दिखते मुलायम
आतिशी अंदाज में वो हर घड़ी रहते
हर शख्स यहाँ अब इशारों से जरा है
ख़ुदा ने भी यहाँ क्या इंसाफ किया है
हर गुनाह उनका यहाँ माफ किया है
हर रोज़ कज़ा करके वो शरीफ बने हैं
कूंचा कूंचा यहां उनकी शरारत से भरा है
हर बज़्म में उन्ही के चर्चे हैं होते
जो चैन छीन के बड़े चैन से सोते
छोटे से शहर के यहाँ ‘राज’ बड़े हैं !
हर पेंड़ यहाँ का शरारा से हरा है
राजकुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी उत्तर प्रदेश