आतंकवाद
हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि सन्यासी बनाने की प्रक्रिया बहुत ही दुरूह है। सन्यासी बनने की लिए मनुष्य को मात्र कर्म से नहीं अपितु धर्म एवं मन से भी अपने आप को पवित्र करना पड़ता है। सन्यासी बनने के लिए मनुष्य को सबसे पहले अपने परिवार से अलग होना पड़ता है। मोह- माया का त्याग, परिवार से विरक्ति, मानवता को समर्पित जीवन, भिक्षाटन से जीवन यापन,सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा, राष्ट्र के साथ साथ विश्व बंधुत्व भाव तथा सबसे महत्वपूर्ण पत्नी, बच्चों या माँ-बाप के प्रति पूर्ण परिग्रह। कहा जाता है कि सन्यासी बनाने की प्रक्रिया में अंतिम परीक्षा अपने ही घर से भिक्षा मांगने की होती है, जो सन्यासी इसमें सफल हो जाता है वही सन्यासी कह लाता है।
इसी प्रकार आतंकवादी बनने के लिए भी बहुत सी कठिन परीक्षाएं पास करनी पड़ती हैं और उसमे भी अंतिम परीक्षा अपने ही परिवार, मित्रों, रिश्तेदारों तथा राष्ट्र के विरुद्ध हथियार उठाकर निर्दोष परिवार वालों की ह्त्या शामिल है। आतंकी का धर्म होता है अपने आकाओं के इशारे पर निर्दोष लोगों की ह्त्या। आज सम्पूर्ण इस्लामी जगत में जो कुछ हो रहा है उसी का परिणाम है। पाकिस्तान में निर्दोष मासूम बच्चे मारे गए, उनके परिवारजनो से सम्पूर्ण विश्व को हमदर्दी है मगर आज उन माँ- बाप को सोचना पडेगा कि जब ईराक में सिया- सुन्नी के नाम पर कत्लेआम मचा था, जब भारत में निर्दोष लोगो को मारा जा रहा था, जब कुर्दिश महिलाओं को बेचा जा रहा था- उनके साथ बलात्कार किया जा रहा था, वहाँ मासूम बच्चे मारे जा रहे थे और भी न जाने कितने बेगुनाह लोगों को गोलियों से भुना जा रहा था तब किसी भी मुस्लिम देश या विश्व के मुश्लिमों ने उनके खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं उठाई ?आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता है, उसका मकसद सिर्फ दहशत फैलाना होता है।
सन्यासी का धर्म होता है मानवता, सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना, विश्व बंधुत्व की अवधारणा तथा शांति की कामना। इसके विपरीत आतंकवादी का धर्म कट्टरवादिता, दहशत, लूट-खसोट, बलात्कार और मौत।
आज पाकिस्तान तथा इस्लामी जगत के रहनुमाओं को सोचना पडेगा कि जब उन्होंने अपने मुल्क में आतंकवादियों की फसल ही बोई है तब वहाँ पर प्यार- भाईचारे के फूल कहाँ से खिलेंगे। अभी भी वक्त है सभी कौम व देश के रहनुमा इस भष्मासुर को ख़त्म करने पर एकजुट हो विचार करें कहीं देर न हो जाए और उनका अपना पोषित पालित यह आतंकवाद का भष्मासुर उनके ही बच्चों की मौत का कारण बन जाए। सोचिये जब कल आपके परिवार ही नहीं रहेंगे तब आप किस कौम व देश के रहनुमा बनेगें ? पैदा करना है तो अपने मुल्क में सन्यासियों को पैदा करो ताकि मानवता ज़िंदा रहे, अध्यात्म से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो, जन जन में खुशियाँ हो, शिक्षित समाज का निर्माण हो, तथा विश्व बंधुत्व की अवधारणा पुष्पित पल्ल्वित हो। हमारा विकास अस्त्रों- शास्त्रों का नहीं बल्कि मनुष्यता का विकास हो। सबके लिए भोजन, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य व मकान हमारी प्राथमिकता हो। भौतिक विकास के साथ साथ मानसिक व आध्यात्मिक विकास हमारी प्राथमिकता हो।
आओ हम सब मिलकर आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठायें, और यह कार्य आज से ही शुरू करें कहीं कल देर न हो जाए और कोई पेशावर जैसा हादसा फिर हमारे बच्चों व परिवारजनो को हमसे न छीन ले।
आतंकवाद
सुनो मुझसे यारों आतंक की कहानी, निर्दोषों का मरना, आतंक की निशानी,
कितने ही बच्चे अनाथ हो गए हैं, कितने जवानों की मिट गयी जवानी।
भाई की कलाई अब सूनी पड़ी है, माँ की झोली भी आंसुओं से भरी है,
घरों का नमॊ निशाँ तक बचा ना, चारों तरफ बस लाशें ही पड़ी हैं।
कितनी मांगों से सिंदूर मिट गए हैं, बूढ़े पिता के कंधे भी झुक गए हैं,
माँ की आँखों की रोशनी गयी है, बहनों की हिफाजत कहीं खो गयी है।
आगे बढ़ो उनके गम को मिटा दो, जीने का हौसला फिर से जगा दो,
दिलों में मानवता की अलख जगाकर, पीड़ित जनों को रहत दिला दो।
बूढ़े पिता की लाठी बने हम, माँ की आँखों में सपने सज़ा दें,
बहनों को फिर से हौसला दिला कर, सुरक्षा में उनकी ढाल हम बना दें।
नए आशियाने फिर से सज़ा दें, खुशियों के फिर से दीपक जला दे,
आँसू न बहने पायें किसी के, इंसानियत की ऐसी ज्योति जला दें।
भाई की कलाई में राखी भी बांधे, उजड़ी मांगों में मोती सज़ा दें,
मानवता को आधार बनाकर, जीवन को फिर से जीना सीखा दें।
आतंक चाहे जिस रंग में आये, बन्दूक से हो या बम से आये,
इंसानियत की नहीं झुकती पताका, आतंकियों को सन्देश यह सुनाएँ।
माँ- बहन- बेटी उनकी भी होगी, जो आतंक के झंडाबरदार बैठे,
जाकर बता दो सरहद पार उनको, मानवता के सिपहसालार यहाँ बैठे।
गर आँच उनकी बहन पर भी आई, अस्मत पे उसकी कहीं उँगली उठायी,
बूढ़ा पिता कहीं ले रहा हो हिचकी, माँ की मिटटी को जमीं मिल ना पायी।
उन्हें एक छोटा सा संदेशा दे दो, बहन बेटियों को भी उनकी बता दो,
भारत में इंसानियत जन-जन में ज़िंदा, माँ की मिटटी को इज्ज़त मिलेगी।
मगर एक बात यह भी बता दो, आतंक के आगे हम ना झुकेंगे ।
बना देंगे खंडहर हर उस मकां का, आतंक जहां पर पनाह ले रहा है।
— डॉ अ कीर्तिवर्धन