कविता
यह कैसी हवा चल रही है जो अैसी हालत बन गैई है ज़िन्दगी की
सिसक सिसककर ख़ुद रो रहे हो पल पल हमें रुला रहे हो ज़िन्दगी में
हंस हंसकर जब किसी ने पूछा हाल हम से हमारे बेचैन दिल का
याद आ गैऐ हमें भूले हुऐ सारे रंजओग़म हमारी इस ज़िन्दगी के
क़िसा था यह तो ज़िन्दगी की हक़ीक़त का नही था रिश्तों के बंधन का
दौर था यह तो साथ मिलकर चलने का नही था यिह ख़्वाबों में जीने का
क्या वजह थी जो अधूरे ही रैह गैऐ सारे ही ख़्वाब हमारी ज़िन्दगी के
हमने तो खो दिया है वजूद ही हमारा इस चार दिन की ज़िन्दगी का
देखना है तो आकर देख लो हमारे दिल के ज़ख्मों की बहार को
गुलशन आप ही की मुहब्बत के हम ने सजा रखा है ज़िन्दगी के
नही जानते किन लफ़्ज़ों में बयान करें हम अहमियत आप की
बिना आपके तो बुहत ही मुश्किल है हमारे लिये जीना ज़िन्दगी को
बुहत अफ़सोस होगा आप को जिस दिन नही होंगे हम आप की जिन्दगी में
पूंछो गे बुहत आँखों को मगर आँसू कभी भी कम नही होंगे आपके
लोग तो बुहत मिलेंगे आप को आप के अरमानों से खेलने वाले
मगर फ़िक्र आप की करने वाले नही होंगे हम कभी भी ज़िन्दगी में
मिले ना सकून जिस दिल में इख़्तियार होता नही है उस दिल पर मदन
मुहब्बत भी नही मिलती किसी को कभी भी रैह कर दिल में ना जिगर में
हम तो हमेशा ही बुहत क़ायल थे आप की मुहब्बत के हमारी ज़िन्दगी में
देखे नही कभी भी किसी ने भी दाग़ दिल के हमारी नज़र से ज़िन्दगी में