कविता दिन और रात *ब्रजेश गुप्ता 16/12/2022 औरों पर हँसने वालों कभी यह भी सोचा तुम भी बन सकते हो हंसी के पात्र किसी रोज उस दिन क्या बीतेगी दिल पर तुम्हारे सभी दिन किसी के एक से नहीं होते अंधेरों के बात उजाला भी होता है रहे यह याद !