कविता

कवि

सुन्दर सुन्दर बातें कर, जग में भरता सुन्दरता।
सुन्दरता से रचे छंद जो मन में घर है करता।
भाव पिरोता मधुर गीत में मंद मंद मुस्काता।
गोल घुमाता आँखें अपनी गूढ़ बात कह जाता।
जब तक समझ सके कोई वह आगे को बढ़ जाता।
श्रोताओं के भाव जगा कर मन झंकृत कर जाता।

भूल गए कुछ याद नहीं है, कौन लता है भाई।
पटक दिया है गुरु ग्राम में कैसी जुगत बनाई।
मुख देखे के रिश्ते नाते, छूटे संगी साथी।
घर में छाया घोर अंधेरा,अब ना दिया ना बाती।
इन गलियों में अब कोई भी भूले से नाआये
घर में गूंजे गीत ना कोई ना कुंडी खड़काये।

— लता यादव गुड़गांव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है