कवि
सुन्दर सुन्दर बातें कर, जग में भरता सुन्दरता।
सुन्दरता से रचे छंद जो मन में घर है करता।
भाव पिरोता मधुर गीत में मंद मंद मुस्काता।
गोल घुमाता आँखें अपनी गूढ़ बात कह जाता।
जब तक समझ सके कोई वह आगे को बढ़ जाता।
श्रोताओं के भाव जगा कर मन झंकृत कर जाता।
भूल गए कुछ याद नहीं है, कौन लता है भाई।
पटक दिया है गुरु ग्राम में कैसी जुगत बनाई।
मुख देखे के रिश्ते नाते, छूटे संगी साथी।
घर में छाया घोर अंधेरा,अब ना दिया ना बाती।
इन गलियों में अब कोई भी भूले से नाआये
घर में गूंजे गीत ना कोई ना कुंडी खड़काये।
— लता यादव गुड़गांव