गीतिका/ग़ज़ल

जिंदगी

जिंदगी
कभी रेत पर बनते बिगड़ते घरौंदों का संसार है जिंदगी।
कभी समुंदर की लहरों पर खेलती पतवार है जिंदगी

कभी नव रूप ,नव रंग, नवल विचार है जिंदगी
कभी नव यौवनकाल का प्यार मनुहार है जिंदगी

कभी गुनगुनी धूप है तो कभी छांव है जिंदगी !
कभी अमराई में भूला बिसरा गाँव है जिंदगी!

कभी अपनोें की झिड़की, और फटकार है जिंदगी !
कभी नाती पोतों का प्यार और दुलार है जिंदगी !

कभी सुबह का चटपटा ताजा अखबार है जिंदगी !
पर मेरे लिये अपनों का स्नेहिल व्यवहार है जिंदगी !

— लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है