जिंदगी
जिंदगी
कभी रेत पर बनते बिगड़ते घरौंदों का संसार है जिंदगी।
कभी समुंदर की लहरों पर खेलती पतवार है जिंदगी
कभी नव रूप ,नव रंग, नवल विचार है जिंदगी
कभी नव यौवनकाल का प्यार मनुहार है जिंदगी
कभी गुनगुनी धूप है तो कभी छांव है जिंदगी !
कभी अमराई में भूला बिसरा गाँव है जिंदगी!
कभी अपनोें की झिड़की, और फटकार है जिंदगी !
कभी नाती पोतों का प्यार और दुलार है जिंदगी !
कभी सुबह का चटपटा ताजा अखबार है जिंदगी !
पर मेरे लिये अपनों का स्नेहिल व्यवहार है जिंदगी !
— लता यादव