पहचान (लघु कथा )
पहचान (लघु कथा )
मीरा उठ दिन चढ आया | कबतक सोती रहेगी जा
बबलू को स्कूल छोड़ आ |माँ मुझे भी स्कूल जाना है ,मेरा भी बस्ता ला दे| “अरे करम जली चुप रह !बापू सुन लेंगे तो अनर्थ हो जाएगा “| लड़किया तो चुल्हे चौके के लिये ही बनी है |
माँ……… मै ये सब न करूँगी मुझे भी पढना है|
बड़ा काम करना है चुप रह चल आके मेरा हाथ बटा |शाम को बबलू के मास्टर जी उसे घर मे भी पढाते है और मुझे कोई पढने नही देता अकेले मे बड़बड़ाती आकाश निहारती है |मानो कुछ संकल्प ले रही हो | मीरा सुबह से ही जल्दी – जल्दी सारे काम निपटा कर मास्टर जी का इन्तजार करने लगती | और जब वो आते तो छुप छुप कर बबलू को जो सबक पढाते सुना करती| जबकभी काम से समय पाती घर के पिछवाडे झाड़ू की सींक से माटी में लिखने का अभ्यास करती |
एक दिन . . . . अरे मीरा यह क्या कर रही है ? पीछे से आवाज आती है मीरा मुड़ती है कुछ नहीं बापू ! उनके साथ मास्टर जी भी थे वह आश्चर्य चकित थे इतनी सुंदर लिखावट देख कर |कहाँ से सीखा मीरा लिखना , तुमतो स्कूल भी नहीं जाती| मीरा उन्हे सब बताती है मास्टर जी के समझाने पर मोहन मीरा को स्कूल भेजनेको तैयार हो जाता है | समय बीतता है मीरा बारह्वी कक्षा में अव्वल आकर गाँव का नाम रोशन करती है जिससे खुश होकर विद्यालय प्रबन्धन मीरा पढाई पूरा खर्च उठाता है |
कुछ वर्ष बाद अरे मोहन ! कहाँ हो ? बाहर आओ देखो तो तार आया है , डाक बाबू आवाज दे रहे हैं |मोहन बाहर आता है , तुम्ही पढ के बता दो हम तो काला अक्षर भैंस बराबर हैं| अरे मीरा आ रही है ग्राम विकास अधिकारी बन कर |मुँह तो मीठा कराओ !
मीरा आती है मोहन की आंखो में आँसू आजाते है |वह उसे गले से लगा लेता है |
अनायास ही उसके मुँह से निकल पड़ता बिटिया तुम से हमारी पहचान है |इस गाँव की पहचान है |