फूल पर तीन कविताएं
1)
फूल की बात
************
कंटकों में फूल मुस्काता हुआ यह कह रहा है ,
प्रकृति हो सुर्भित इसी से इस चुभन को सह रहा हूँ |
आँधियों में ताप में पतझाड़ की इस मार को सह,
मैं पुन: मधुमास लाने के लिये ही जी रहा हूँ |
खार के संग पल रहा हूँ मुस्कराकर जी रहा हूँ ,
महक से दिन रात अपनी जग सुवासित कर रहा हूँ |
ज़िंदगी के पल क्षणिक हैं वार दूँ वह भी खुशी से,
बस यही एक चाह लेकर मैं धरा पर खिल रहा हूँ |
ऐ मनुज तू सीख जीना प्यार से धरती सजा दे
सद्गुणो की खुशबुओं से ज़िंदगी मीठी बना दे|
मै सुमन हूँ तुम सुमन हो यह धरा माँ है हमारी ,
हम मिटा करके हम स्वयं को इस धरा पर स्वर्ग ला दें |
(2)
न्यारे फूल
*********
बहुत प्यारे बहुत निश्छल हैं कितने न्यारे फूल
सभी को अपनी महक रंग से लुभाते फूल |
हँसी – खुशी हो या दुख – दर्द कोई रंज नहीं
हँसो हँसाओ रहो काँटो मे गर कहते फूल |
दिलों में दर्द प्यार सबके लिये है दिल में अमीर और गरीब सबको सदा भाते फूल |
है सुकोमल से मगर सीख सख्त देते हैं
के मुस्कराओ रहो काँटो मे गर कहते फूल |
ये फूल हैं बडे ही शोख से मुस्कान भरे
के सबके प्यार का अहसास करा जाते फूल |
(3)
शिरीष
*******
आतप वात के आघातो से
बन जाता है त्रासक
वातावरण
ताल ,तलैया ,पोखर ,नदियाँ
सूख जाते हैं वृक्ष
दुरूह वातावरण
ऐसे वातावरण में
खिला रहता है जो
वो पुष्प है शिरीष का
देता है चुनौती
लू की संघारक शक्ति को
रह कर अप्रभावित
देता है प्रेरणा
विभीशिकाओ और संकटों में
हर पल प्रसन्न रहने की
सुख दुख से निर्पेक्ष
अवधूत सद्रश ,सौंदर्य जन्य
प्रभाव परिमल
लोक मंगल वाणी का करता है प्रसार
प्रतीक द्रढता और आदर्श का
देता है संदेश
नही ये वस्तु केवल श्रीन्गार की
मानव के लिये ये प्रेरणा का स्रोत है |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”