कहानी – सुगंध
सात भाई – बहन में सबसे छोटी गायत्री घर में सबकी लाड़ली थी| घर का काम- काज तो उसे कभी करना ही नहीं पड़ा | समय के साथ-साथ वह भी बड़ी हो रही थी |पर अभीभी वही ढंग था जीने का वही पुरानी दिनचर्या मौज – मस्ती , पढना , खेलना बस|
धीरे- धीरे तीन बहनों का ब्याह हो गया | भाई – भाभी तो कई साल से हि बाहर रहते थे |
होली का समय था पिता जी के कुछ मित्र घर पर आये हुए थे ,माँ और बहन बाजार गयी हुई थी| गायत्री असमंजस में थी क्या करे ????? तभी पिता की आवाज आती है बेटी जल्दी से चाय बना कर पिलाओ |
गायत्री ने पहली बार चाय- नाश्ता बनाया और पिता साहित उनके मित्रो के सम्मुख रक्खा | तब तक माँ भी घर आ चुकी थी और आश्चर्य चकित थी |
गायत्री के मन मन ही मन डर रही थी तभी उसे पिता की आवाज सुनाई देती है |वह बुद्बुदाती है आज तो क्लास लगने वाली है और कमरे में जाती है | पिता जी ने सिर पर प्यार भरा हाँथ रखा और उसकी बहुत प्रशंसा की और कहा ऐसे ही अच्छा अच्छा नाश्ता बना कर खिलाया करो |
मानो गायत्री को कोई अनोखी निधि मिल गयीथी | उसके अंदर भी घर के कार्यों के प्रति लगन जग चुकी थी | अब तो कभी वह भी कुछ न कुछ नया प्रयोग करती और कुछ नया खाने को बनाती | पिता की तारीफ़ और आशीष उसे सदा ही मिलता |
पिता जी तीखा नहीं खा पाते थे पर गायत्री का चटपटा खाना खालेते थे|
एक दिन बड़ी बहन ने कहा पिता जी आप मेरे और माँ के बनाये सात्विक खाने को तीखा कहकर अक्सर छोड़ देते हैं पर गायत्री का बनाया खाना तीखा होने के बावजूद भी बहुत चाव से खाते हैं जब की आँख और नाक दोनो बहते रहते हैं |ऐसा क्यों ?????????????
पिता जी हँसकर कहते हैं अच्छा खाना बनाने के साथ-साथ उसका प्रस्तुतीकारण भी बहुत महत्व रखता है जिससे खाने का स्वाद दुगना और अवगुण छिप जाते हैं |
इसी कारण गायत्री का खाना तीखा होने के बावजूद भी अधिक स्वादिष्ट और सुगंध बिखेरता है |वह बहुत प्रेम से खिलाती है |
बड़ी बहन भी पिता का भाव सारांश समझ गयी थी | दोनो खुश थीं| संध्या आरती के बाद पिता जी ने दोनों को एक एक पर्फ्यूम उपहार में देते हुए कहते हैं ! जैसे ये तुम्हारे वस्त्रों को महकाता है इसी तरह तुम दोनों भी अपने सद कर्मो से घर आँगन और जीवन मे सुगंध बिखेरो | आनन्दातिरेक से दोनों के नयन अश्रू सेभर गये | पिता ने दोनो को हृदय से लगा लिया |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”