कविता – मुझे हवा में बिखरने दो
शाम में सूरज को ढल जाने दो
फिजां में खुशबू को महक जाने दो
कोई मेरा रास्ता मत रोकना आज
मुझे भी हवा में बिखरने दो
शाम में सूरज को ढल जाने दो
भौंरा को की पंखुड़ी में सो जाने दो
कोई मधुकर को मत रोकना आज
उसे भी प्रेम डगर पे बहकने दो
शाम में सूरज को ढल जाने दो
चन्दा को आसमान पे मुस्कुराने दो
कोई चाँदनी को अब मत टोकना
रात में सितारों को जगमगाने दो
शाम में सूरज को ढल जाने दो
पायल को पैरो में बँध जाने दो
कोई संगीत को मत बतलाना
पायल की घूंघरू को छनक जाने दो
शाम में सूरज को ढल जाने दो
बादलों को आसमान पे छाने दो
कोई बरखा को मत रोकना अब
पानी को जमीं पर बरस जाने दो
— उदय किशोर साह