कहाँ कहाँ लिए फिरते हम – अपनी ज़िनदा लाश को अपने काँधों पर
इस लिए ख़ुद को ही हम ने – अपने जिसम से जुदा कर लिया है
छुपी हुई तो होती हैं बुहत सारी – ख़ुशियाँ ग़मों के पैहलूं में ज़रूर
मगर बिछडते ही उन के – इन ख़ुशियों ने भी मूंह हम से छुपा लिया है
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ज़मीर अपने का ज़िनदगी में सौदा – कभी भी किया जाता नही है
छीन कर किसी से कुछ भी – दामन अपना भरा जाता नही है
वादा अगर किसी से किसी भी बात का – कभी भी किया जाता है
तो फिर बात अपनी से कभी भी – पीछे तो हटा जाता नही है
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रंग किस किस तराह के छलकते हैं – इन आँखों से आप की
पयास हमारी रूह की भुझ जाती है – हमेशा ही क़ुरबत से आप की
पयास है यिह अपने पन की – या सादगी कहें कहें इसे फ़ितरत की
मिलना आप से इस ज़िनदगी में बे शक – हमारे नसीब में नही है
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नाम आप का होंटों पर आने से – राहत मिलती है हमारे दिल को
होश में ला कर होश मिटाने वाली – कहीं यिह आप की अदा तो नही है
हंस कर जिस ने भी बात की – हम उसी के हो गैए इस दुनिया में
मिल जाए सब कुछ हर किसी को – तो फिर जीने का मज़ा कोई नही है
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उमीद आसमान की मत करो हमेशा – ही आप अपने सपनों में –मदन–
सपनों की सचाई के लिये भी तो – होना ज़मीन का भी ज़रूरी है
नज़र बदली जा सकती है आदमी की – मगर नज़रिया कभी भी नही
लिखा लकीरों का भी तो कभी भी – बदला जा सकता नही है