ग़ज़ल
ये शीराज़ा तो घड़ी भर में बिखर जाएगा
किसे मालूम है कल कौन किधर जाएगा
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जो मोम होगा पिघल जाएगा इस आग में वो
सोना होगा जो कुछ और निखर जाएगा
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गुनाहों से यूँ दागदार है तेरा चेहरा
कि तू अक्स अपना देखकर डर जाएगा
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शाख से टूटे हुए बर्ग का ठिकाना क्या
हवा ले जाएगी जिधर ये उधर जाएगा
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इसकी आदत ही नहीं एक जगह रूकने की
वक्त कैसा भी होगा दोस्त गुज़र जाएगा
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।