बाल-कहानी – पुरस्कार
रोज की तरह आज भी शाला में प्रातः कालीन राष्ट्रगान चल रहा था।इसके बाद बच्चों को सम्बोधित करते हुए प्रार्थना प्रभारी मास्टर ने प्रेरक वाक्य के लिए राजू !रामू!गोपाल! कहके पुकारा पर कोई तैयार नहीं हुए। पीछे से राजू ने कहा- “मास्टर जी आज हम लोगों ने कोई तैयारी नही की है।अतःआप से निवेदन है की आज हमें कुछ ऐसा प्रेरक प्रसंग सुनाएं जो हमारे लिए प्रेरणा बन जाए।”
मास्टर जी ने कहा- “अच्छा!अच्छा! ठीक है! तो सुनो !!”
“एक गाँव मे तीन मित्र थे,तीनो खूब पढ़ाई करना चाहते थे।पर दुख की बात है की गाँव में मात्र प्राथमिक शाला थी।उन तीनों ने सोंचा की आगे की पढ़ाई कैसे करे ?
काफी सोंच-विचार के बाद उन्होंने यह तय किया की शहर मे जा के आगे की पढ़ाई पुरी करेंगे।”
इस प्रकार से तीनो मित्र गाँव से शहर आ गए।पर यहाँ उनका कोई अपना सगा- संबंधी था नहीं जिनके यहाँ वो रह सके।अतः उन्होंने एक किराये का घर ले लिया।और तीनों मित्र वहाँ रह के जम के पढ़ाई करने लगे।और इस तरह से उन्होंने बारहँवीं की परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास कर ली।और वे वहाँ से विदा होने लगे।घर का मालिक उनकी लगन निष्ठा से काफी प्रसन्न हुआ। पर उनके विदा होने पर वह बहुत चिंतित जान पड़ा। मित्रों ने इसका कारण जानना चाहा। एक मित्र ने पूछ ही डाला- “क्यों काका जी आप इतने चिंतित क्यों हैं ?”
तब वह अपनी पीड़ा को बताता है- “क्या बताऊँ बेटा मेरी एक मात्र संतान है जो पढ़ाई-लिखाई में कमजोर है।मै भी चाहता हूँ की वह तुम लोगों की तरह पढ़- लिख जाए।”
तीनों मित्र काका की बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे।तब उनको याद आया की उनका एक छोटा सा बच्चा था जो चौंथी दफा तक ले दे के पास हुआ है,और यहाँ-वहाँ भटकता फिरता है।हमारे कमरों मे आता जाता है।पर कुछ बोलो तो जवाब नही देता।
तब तीनो मित्रों ने कहा- “तो आप भोलू की बात कर रहे हो काका!!हाँ हाँ बेटा !”
तभी मित्रों ने कहा- “आखिर वह भोलू कहाँ है काका जी ?”
काका ने बताया- “कहीं खेल रहा होगा !
फिर काका ने “भोलू !भोलू !” कहते हुए आवाज लगायी। कमरे मे वह अपने कॉपी पुस्तकों को फाड़- फाड़ कर खिलौने बना खेल रहा था।तभी अपने पिता की आवाज को सुनकर “जी बाबा !” कहते हुए वहाँ पहुँच गया।जब वह आया तो देख कर अंदाजा हो गया की वह पढ़ाई- लिखाई में कैसा है ?क्योंकि वह हाथों में फटे हुए पन्नों का पुलिंदा लेके आया। काका ने उन तीनों मित्रों को इशारे से अवगत कराया।तीनों मित्र समझ गए।
मित्रों ने भोलू को पास बुलाया और कहा- “देखो बेटा ! पढोगे-लिखोगे तो बड़ा इंसान बनोगे,और माता-पिता का नाम रोशन करोगे।” हम तुमको तीनों मित्र अपने पुरस्कार में पाए एक-एक कलम दे रहे हैं। पर तुमको भी पढ़ाई करके हमारी तरह प्रथम श्रेणी में आना होगा।
तीन-तीन कलम देखकर भोलू खुशी से उछल गया और कलम ! कलम! कहते हुए लपका। मित्रों ने कहा- “आपको हर साल प्रथम श्रेणी मे आना होगा,तभी कलम मिलेगी।”
“भोलू ने कहा-“ठीक है भैया।”
“तीनों मित्र उसके पिता को समझा कर और भोलू को कलम देकर वहाँ से विदा हो गए। फिर क्या था उस कलम ने भोलू को इस प्रकार प्रभावित किया कि वह भोलू पढ़ाई में, प्रतिवर्ष अव्वल आने लगा।और संयोग ऐसा हुआ की वह पास के ही गाँव में मास्टरी की नौकरी पा गया।उसके बाबा बहुत खुश हुए।और उन तीनों मित्रों को याद करने लगे।उन्ही दिनों शाला में बाल मेले का आयोजन हुआ,गाँव के बड़े बुजुर्गों को बुलाया गया।जिनमें एक सरपंच,एक दुकानदार,और एक किसान था।आज भोलू मास्टर बनकर स्वागत सत्कार कर रहा था।तभी अचानक तीनों अतिथियों को देखकर मास्टर जी भौंचक से रह जाते हैं,और बिना पलक झपकाए एकटक देखने लगे।
भैया जी!भैया जी ! आप लोग तो शायद वही तीनों मित्र….!
“शायद नही!! हम वही तीनों मित्र ही हैं।” उन तीनों मित्रों ने कहा। “तुमने हमारी कलम की लाज रख ली।तुमने अपने माता-पिता के सपनों को साकार कर दिया।”तुम धन्य हो बेटा!” अपने वादे के मुताबिक तुमको आज फिर से एक-एक कलम पुरस्कार मे दे रहे हैं।तुम इसे स्वीकार करो।”
वह भोलू मास्टर उनके चरणों मे गिर गया तीनों मित्रों ने उठाकर उसे गले लगा लिया।
इधर मास्टर जी ने प्रार्थना सभा से कहा- जानते हो वह मास्टर जी कौन था ? प्रार्थना सभा में सन्नाटा छा जाता है!
फिर आवाज आती है – “कौन था मास्टर जी ?”
तब मास्टर जी ने कहा वह मास्टर आपके सामने खड़ा है जो आपको प्रेरक प्रसंग सुना रहा है,भोला राम! आपका मास्टर जी ! मास्टर जी!! फिर क्या था तालियों से प्रार्थना सभा गुंज जाती है।
— अशोक पटेल “आशु”