कुण्डली/छंद

सूर्य पर केंद्रित छंद

दिव्य दिवाकर,नाथ प्रभाकर,देव आपको,नमन करूँ।
धूप-ताप तुम,नित्य जाप तुम,करुणाकर हे!,तुम्हें वरूँ।।
नियमित फेरे,पालक मेरे,उजियारा दो,पीर हरो।
 दर्द लड़ रहा,पाप अड़ रहा,नेह करो हे!,शक्ति भरो।।
सबको वरते,जगमग करते,हे ! स्वामी तुम,सकल धरा।
मन है गाया,जीवन पाया,नवल ताज़गी,लोक वरा।।
तुम भाते हो,मुस्काते हो,जीव सभी ही,प्राण वरें।
धूप लुभाती,मौसम लाती,किरणें सबका,शोक हरें।।
शक्तिमान तुम,धैर्यवान तुम,,गति साधे हो,तेज बढ़ो।
दिखता काला ,वहाँ उजाला ,बिखराओ अब,नेह मढ़ो।।
दुर्बल काया,बिखरी माया,अर्ज़ करूँ मैं,नाथ सुनो।
 हे! नभस्वामी,अंतर्यामी,देव प्रखरतम,फूल बुनो।।
है अँधियारा,दो उजियारा ,लिए दिव्यता,मान चुनो।
दयासिंधु हो,दीनबंधु हो,हे! जगपालक,गान गुनो ।।
कितना दुख है,रोता सुख है,घबराया नर,भोर करो।
दया करो अब,नेह झरोअब,देव दिवाकर,शोर हरो।।
उजियारे पल,हारे हर छल,देव दिवाकर,हाथ गहो।
कर्मठ शाही,नभपथराही ,प्रीत बढ़ाओ,रोज़ बहो।।
खुशियाँ रचते,नीती सृजते,गहन तिमिर को,मात करो।
चुप ना रहना,सदा विहँसना,होकर मुखरित, बात करो।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]