गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यार बसाकर तो देखिए
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नफरत को ज़हनों दिल से भुलाकर तो देखिए ।
मां भारती की शान बढ़ाकर तो देखिए ।
हरबार सरलता से नहीं काम चलेगा,
कुछ कारगर कदम को उठाकर तो देखिए ।
होगी न अमावस की रात होगा उजाला,
पूनम का चांद दिल में उगाकर तो देखिए ।
उम्मीद फिर फलेगी सज उठेगा ये जहां,
जुल्मों सितम ,कहर को मिटाकर तो देखिए ।
सोने का परिंदा मेरा भारत पुकारता ,
सुनिये पुकार मान बढ़ाकर तो देखिए ।
अपने वतन से बढ़ के नहीं दूसरा वतन ,
दुनियां में घूम-घाम पलटकर तो देखिए ।
दावा है फलक पर लिखा भारत महान ही,
कुछ और चार चाँद जड़ाकर तो देखिए ।
मन ‘मृदुल’ सुनरहा बसन्त की बहार को,
मुमकिन है दिल में प्यार बसाकर तो देखिए ।
©®मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016