गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नफ़रत मिटाना चाहिए

ज़िंदगी के फलसफ़े को आजमाना चाहिये
सुख मिले या दुख हमें बस मुस्कराना चाहिये |

हर तरफ़ खुशियाँ बरसती हों कहाँ तक लाज़मी
पास हों खुशियाँ अगर सब में लुटाना चाहिये |

दर्द पी कर जी रहेजो तड़फड़ाते भूमि पर
रिस रहे उन घाव पर मरहम लगाना चाहिये |

है अगर इन्सानियत छलका मुहब्बत का घड़ा |
प्यार से पलती हुयी नफ़रत मिटाना चाहिये |

खो गये वो पल सुहाने जो जिये बचपन में थे
उन पलों की याद को बस गुनगुनाना चाहिये |

नफ़रतो के कैकटस उगने लगे है हर तरफ़
भर मंजूषा प्यार की नफ़रत मिटाना चाहिये |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016