ग़ज़ल
नफ़रत मिटाना चाहिए
ज़िंदगी के फलसफ़े को आजमाना चाहिये
सुख मिले या दुख हमें बस मुस्कराना चाहिये |
हर तरफ़ खुशियाँ बरसती हों कहाँ तक लाज़मी
पास हों खुशियाँ अगर सब में लुटाना चाहिये |
दर्द पी कर जी रहेजो तड़फड़ाते भूमि पर
रिस रहे उन घाव पर मरहम लगाना चाहिये |
है अगर इन्सानियत छलका मुहब्बत का घड़ा |
प्यार से पलती हुयी नफ़रत मिटाना चाहिये |
खो गये वो पल सुहाने जो जिये बचपन में थे
उन पलों की याद को बस गुनगुनाना चाहिये |
नफ़रतो के कैकटस उगने लगे है हर तरफ़
भर मंजूषा प्यार की नफ़रत मिटाना चाहिये |
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’