शौकीन मिज़ाज
बच्चों के कमरे से बहुत दिनों बाद खुल कर हंसने की आवाज आ रही थी । अपने कमरे में बैठी गायत्री जी वॉइस टाइपिंग टूल से एक प्यारी सी कविता लिख रहीं थी ।
कविता के बोल से आज बच्चों की हंसी का मेल होते ही उनके होंठों पर स्निग्ध मुस्कान उभर आई । पता नहीं कैसे चमत्कार हो गया ! मन में आया कि, जाकर देखूं लेकिन निगोड़ी प्राइवेसी आड़े आ गई।
काश बच्चे जीवन की राहों में थोड़े शौक को भी ज़गह दिये होते तो , यूं अकेले अकेले सदैव तनाव में नहीं रहते ।
मनोरंजन के नाम पर देर रात तक टीवी देखना, घंटों व्हाट्सएप पर चैट करना, कानफोड़ू संगीत सुनना…ओफ्फ नयी पीढी के नये चोंचले ।
मैं क्यों यह सब सोच कर अपने पुलकित मन को कुंठित कर रही हूँ ?
ऐसा सोचते वह पुनः लिखने लगी–
भोर की बेला बड़ी सुहानी
पंछियों का कलरव मन को भाये
छज्जे पर रखा गेंदा गुलदाऊदी
नयी स्फूर्ति जगाये ….आगे कुछ लिखतीं उससे पहले ही बच्चों को ट्रैक सूट पहन कर और योगा मैट लेकर अपने कमरे में आते देख कर हैरान हो उठीं ।
बहू कमरे में प्रवेश करते ही कहने लगी–
“माँ थोड़ी देर में बिन्नो आती ही होगी आप चाय बनवा कर पी लेना और थोड़ी मुसली या ओट्स दूध के साथ ले लेना ।”
“ठीक है बहू, चिंता मत करो, मैं अपना ख्याल आज भी रख सकती हूँ ।”
बेटा भी बहू के साथ पीछे पीछे आ गया था, वह भी उत्साहित होकर कहने लगा–
“माँ हम दोनों आज से ज़िम ज्वाइन कर रहे हैं, नये साल का संकल्प है हमारा, स्वस्थ हो तन और मन हमारा ।”
नहीं कह पाईं गायत्री जी कि, अस्थिर दीमाग की सोच स्थिर कैसे हो सकती है ?
शौकिया शौक पालना और स्वास्थ्य की दृष्टि से शौक पूरा करने में अंतर बच्चे काश समझ पाते ।
— आरती रॉय