कविता

आशा

निराशा के गहन अंधकार में
आशा की दीप जलाया     हूँ
मंजिल पाने की जिद में  मेंने
पत्थरीली पथ पे खुद  आया हूँ

कह दो तुफाँ से कोई     अब
ये दीप जलेगी तब       तलक
जब तक ना मंजिल को मैं पा लूँ
कारवाँ चलेगी अब दूर     तलक

कोई पर्वत राह में आ     जाये
या सागर हमको    डरा  जाये
कदम ना रोक पायेगें वो   मेरे
आशा की किरण हैं हम सजाये

आशा की किश्ती पे बैठा   हूँ
डूब जाने की कोई परवाह नहीं
हाथ में आरजू की पतवार है
मुकाम की अब चाह    पली

चलना ही मंजिल पाना  है
मैं तो चलता ही जाता   हूँ
मंजिल कदमो में     होगी
मैं तो बस बढ़ता जाता    हूँ

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088