पक्की सनातन सोच
अलविदा- 2022
स्वागतम- 2023
समय बदलता है, दिन बदलता है,
रात बदलती है, हर बात बदलती है,
बड़ा शोर मचता है साल बदलने का,
फ़िज़ा में चारों ओर रवानी रहती है.
साल की संख्या में इजाफा होता है,
सदा की भांति एक अंक आगे बढ़ जाता है,
रात के बारह बजे घंटे बजते हैं,
नया साल आ जाने का फौरी गुमान होता है.
कुछ खोकर कुछ पाकर यह साल भी,
विदाई की उसूली दस्तक देने लगा है,
इस साल की अनेक कहानियों का,
लेखा-जोखा पूरी तरह लेने लगा है.
अपनापन लेकर कई नए मित्र मिले,
कुछ ने स्टेटस में ही दिल की बात कह दी,
कुछ गीता पर हाथ रख कर भी सच से हिले.
कुछ सम्मान भी मिले हौसला अफज़ाई हुई,
श्रेष्ठ रचनाओं मे भी कुछ अगवाही हुई,
खुद के दु:ख और दूसरे के सुख की,
गिनती छोड़ी, ज़िन्दगी कुछ आसान हुई.
कपड़ों की “मैचिंग” बिठाने के बजाय,
हालातों से “मैचिंग” बिठाने का गुर मिला,
“इंसान की वाणी एक कीमती आभूषण है”,
जैसे गहन गुरों का मिलता रहा सिलसिला.
महत्व समय का नहीं, भावना का होता है,
भावना से भगवान का मिलना संभव होता है,
सीखा हमने जाने-अनजाने हुई भूलों से सबक,
ऐसा न कर पाने का अंजाम अकल्पित होता है.
आस का दीप जलाए रखा है हमने,
परिवर्तन अटल है सोच रखा है हमने,
पुराना साल जाएगा, नया साल आएगा,
कुछ देकर जाएगा, कुछ लेकर जाएगा,
इस सनातन सोच को पक्का कर रखा है हमने,
इस सनातन सोच को पक्का कर रखा है हमने,
इस सनातन सोच को पक्का कर रखा है हमने.