पछुवा हवा
निष्ठुर हो गई शरद हवाऐं
काम ना आई सूर्य की दुआयें
रे पछुवा तुम बना है सयाना
क्यूँ लॉघते हो ठंडक का पैमाना
रात काली है तम अंधियारी
सूरज की किरण पे है ये भारी
जाड़ा माघ ने नखरा दिखलाया
जीव जन्तु को ठंड में रुलाया
चलो अलाव की जुगाड़ लगाये
गरमी पाने की उपाय रचायें
लकड़ी सूखी डाल पे दिखालाई
ये देगी गरमी हम सबको भाई
ओ गंगू काका तुम भी आना
साथ घर से माचिस भी लाना
आओ सब मिल कर आग जलायें
गरमी से अब राहत सब पाये
श्वान भी ठंडक से गली में रोता
उनका कोई उपाय ना कहीं होता
अय शरद हवा तुम भी कुछ करना
ठंडक से जग को राहत तुम देना
— उदय किशोर साह