लघुकथा

लघुकथा – संस्कृति प्रेम

मिस्टर.आधुनिक लाल व श्रीमान संस्कृति प्रसाद एक ही मोहल्ले में रहते थे । दोनों पढ़े-लिखे नौकरी-पेशा भी थे । दोनों में मित्रता भी अच्छी खासी थी । पर यथा नाम दोनों के सोचने-विचारने में कुछ-कुछ नहीं बहुत कुछ अंतर भी दिखाई देता था ।

यूँ तो साल में कई अवसर ऐसे आते जब दोनों मित्र आपस में भिड़ जाते आधुनिकता व संस्कृति के नाम पर । और ये संवाद/विवाद होता किसी एक दिन पर परन्तु उस बहस का असर कई सप्ताहों तक दिखाई देता था । उस असर को मि. आधुनिक लाल ही खत्म करते स्वयं को लचीला बनाकर अर्थात आगे से बोल कर ।
आज फिर इकतीस दिसम्बर था आधुनिक लाल ने अपने मित्र को छेड़ने की दृष्टि से उस ग्रुप में नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर ही सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित कर दी जिससे श्रीमान संस्कृति प्रसाद भी जुड़े हुए थे । देखते ही देखते संस्कृति प्रसाद ने एक अच्छा सा लेख अंग्रेजी वर्ष के विरोध में लिख कर ग्रुप में डाल दिया । उस लेख को पढ़कर चिढ़ाने के उद्देश्य से आधुनिक लाल ने संस्कृति प्रसाद के स्वयं के नंबर पर भी नव वर्ष बधाई संदेश भेज दिया पर उसका उत्तर संस्कृति प्रसाद ने जानबूझकर उस समय नहीं दिया ।
अगली सुबह संस्कृति प्रसाद ने आधुनिक लाल को रास्ते में पकड़ लिया और बताने लगे उसे भारतीय संस्कृति का ज्ञान, उसके त्योहार/पर्वों के मनाने के पीछे के उद्देश्य, साथ ही हर भारतीय के कर्तव्य जो अपनी संस्कृति के प्रति होने चाहिए ।
बहुत सुनने के पश्चात आधुनिक लाल ने कहा- मित्र ! वर्ष में कुछ दिनों को छोड़कर सब कार्य आप और हम सब अंग्रेजी महीनों व उसकी तारीखों के अनुसार करते हैं । तब हमें  भारतीय वर्ष उसके महीने याद नहीं आते । जैसे ही इकतीस दिसम्बर या एक जनवरी आती है तो तुम्हारी संस्कृति जो मेरी भी है अचानक याद आ जाती है । इस प्रकार की भारतीयता कुछ  जमती नहीं । चलो, कोई बात नहीं, ये बताओ, आज किस मास के किस पक्ष की कौनसी तिथि है?
 अचानक प्रश्न सुनकर श्रीमान संस्कृति प्रसाद इधर उधर देखने लगे । जब उत्तर देते नहीं बना तो कहने लगे कि मैं तो बस इतना जानता हूँ कि चैत्र प्रतिपदा को हम भारतीय नव-वर्ष के रूप में मनाते हैं । ये हमारी एक सनातनी परम्परा है । एक जनवरी हमारा नव वर्ष नहीं है आया समझ में … हाँ, आया समझ में… उनकी झल्लाहट भरी बात सुनकर मि. आधुनिक लाल पुनः बोले- तो आपको आपकी जन्म तिथि तो अवश्य पता होगी ये ही बता दीजिये । तो जल्दी जल्दी में संस्कृति प्रसाद ने कहा- पाँच जनवरी उन्नीस सौ अड़सठ । ये सुनकर आधुनिक लाल ने कुछ मुस्काते कुछ झुँझलाते अपने मित्र से कहा- पर ये तो अंग्रेजी दिनांक है तो वो कहने लगे कि हिन्दी तिथि तो मुझे पता नहीं है । जब अपने दोनों प्रश्नों के उत्तर संस्कृति प्रसाद से नहीं मिले तो मि. आधुनिक लाल अपने को उनसे  छुड़ाकर आगे को बढ़ लिए । और सोचने लगे कि क्या इस प्रकार के लोग बचा पायेंगे अपनी संस्कृति को, जिन्हें अपनी जन्म तिथि व आज कौनसी हिन्दी तिथि है ये भी पता नहीं… धन्य है ऐसा संस्कृति प्रेम…धन्य हैं ऐसे लोग ।
— व्यग्र पाण्डे 

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201