चलो इस उतरती सांझ में
पहाड़ की गोद में बैठ कर
सिंदूरी धूप को शिखर चूमते हुए देखें ।
चलो इस उतरती सांझ में
दरिया के किनारे बैठ कर
उछलती गिरती लहरों को तट चूमते हुए देखें ।
चलो इस उतरती सांझ में
किसी पेड़ के नीचे बैठकर
नीड़ की ओर लौटते पंछियों का नर्तन देखें ।
चलो इस उतरती सांझ में
किसी पगडंडी पर बैठकर
थके-हारे बटोही को घर लौटते हुए देखें
चलो इस उतरती सांझ में
किसी उपवन में बैठकर
भंवरों को पंखुड़ियों पर प्रणय-गीत लिखते हुए देखें।
चलो इस उतरती सांझ में
किसी चूल्हे के पास बैठकर
आग की गर्माहट में मुहब्बतें पकती हुई देखें ।
चलो इस उतरती सांझ में
प्रियतम की गोद में सिर रखकर हवा को
जिंदगी की किताब के पन्ने पलटते हुए देखें ।
चलो इस उतरती सांझ में
कलम को कागज के हृदय पर सबके लिए
इबादत की नज्में लिखते हुए देखें ।
— अशोक दर्द