लघुकथा – सोच
“झाँसी वाला रिश्ता हमें नहीं जम रहा।” माँ ने कहा
“क्या कमी है उसमें? अच्छा कमा रहा है, इकलौता बेटा है।” पापा ने अपनी बात रखी।
“शिवानी के मैच का नहीं है, रंग कितना दबा है। इससे तो कानपुर वाला —-“मायके आई बड़ी दीदी आगे कुछ बोलतीं, कि दादी ने टोक दिया।
“अरे लड़के का कहीं रूप रंग देखा जाता है। ऐसे मीन-मेख करतीं रहीं तो हो चुका ब्याह शिवानी का।”
“मम्मी, शिवानी दीदी का ब्याह हो जायेगा तो उनका कमरा मुझे मिल जायेगा न ?” छोटा मिंटू अपनी जुगाड़ में था।
सब शिवानी के बारे में सोच रहे थे, शिवानी अपने बारे में क्या सोचती है, यह किसी ने नहीं सोचा.
— सुनीता मिश्रा