ताड़ी का मुख्य मौसम दिसंबर से मई तक होता है। फरवरी से मार्च तक आने वाली ताड़ी को वांझिया ताड़ी तथा अप्रैल से मई तक मिलने वाली को फलनियां ताड़ी कहा जाता है। इसके अलावा अन्य महीनों में भी ताड़ी आती है, लेकिन उसमें वह बात नहीं होती। जून से अगस्त तक स्वाद व सेहत के लिए वांझिया ताड़ी को सबसे अच्छा माना जाता है।यह पेड़ ताड़ी या नीरा को हमें ग्लूकोज के रूप में देता है| जो काफी स्वादिष्ट एवं मीठा होता है |लेकिन सूर्य की किरणों से इसका किण्वन होने लगता है और यह अल्कोहल में बदल जाता है।जिसमे अल्कोहल की मात्रा बहुत ही कम होती है | आजकल विभिन्न रसायनों से नकली ताड़ी बनाने का चलन बढ़ गया है।सूर्य उदय के पूर्व उतारी हुई ताड़ी में आहार को पूर्ण पोषण करने वाले तत्व होते है।
ताड़ी रस आलीराजपुर, झाबुआ और धार जिले के गाँवों में बहुत होता है | जिसके पास ताड़ी के पेड़ होते है उसकी आर्थिक स्थिति का आंकलन मजबूत माना जाता है | वैसे सिन्धा ताड़ी भी होती है | जो खजूर के पेड पर उतरती है | जिसमे फल लगते है जो गर्मी के दिनों आते है | उन फलों को सिंधोला बोलते है | ये बाजारों में ढेरी या वाटा लगाकर बेच जाते है |ताड़ी प्राप्त करने हेतु ताड़ी के पेड़ चढ़ने में जो अनुभवी होते वे ही इस पेड़ पर चढ़ पाते थे कई लोग पेड़ से गिर कर मृत्यु या घायल होते थे किन्तु आधुनिक तरीके से चढ़ने के लिए कई उपाय काम में अब लिए जाते है |मेहमानो का स्वागत ताड़ी पिलाने और ताड़ी भेंट करने ये तरीका क्षेत्र में काफी चलन में है |ग्रामीण क्षेत्रो में पौष्टिक ताड़ी सड़कों के किनारे सस्ती दरों पर आसानी से मिल जाती है | ये ताड़ी बेचने वाले ताड़ी के शौकीन लोगो को चखा कर देते है| विशेष जलवायु के क्षेत्र में ही इसके पेड़ होते है |हर जगह पर नहीं होते |ज्यादा समय की ताड़ी खराब हो जाती और नुकसान देती है |सुबह की ताजी ताड़ी नीरा सेहत के लिए लाभकारी होती है |जैसे जैसे सूर्य का ताप चढ़ता वैसे वैसे ताड़ी में नशे का हल्का प्रभाव पैदा हो जाता है।कुछ भी हो नशे की प्रवृत्ति से दूर रहा जाए यही जीवन के लिए श्रेष्ठ है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”