धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

पुनर्जन्म का सच क्या अधूरी कामना है

विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पुनर्जन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है। परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है।  पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है।  जीवात्मा पुनर्जन्म लेती है। जीवात्मा को कर्मों के आधार पर जन्म मिलता है। जीवात्मा के सूक्ष्म शरीर के साथ उसके धर्म, कर्म व ज्ञान साथ रहते हैं। शरीर छोड़ते समय मन में जो अधूरी कामना रह जाती है तब वह वर्तमान जन्म में उसकी पूर्ति के लिये जन्म लेता है। कुछ वैज्ञानिक उन्हें पूर्व जन्म का अर्जित ज्ञान नहीं मानते। उनका कहना है कि मस्तिष्क (इतंपद) में एक प्रकार का रसायन प्रोटोजोआ नाम का होता है जिसमें मस्तिष्क का एक विशेष भाग सक्रिय हो जाता है और इस प्रकार की विलक्षणता आती हैं। इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में मोबाइल में दो सीम और किसी मोबाइल में ज्यादा सीम भी होती है जो मेमोरी की क्षमता रखती है तो मानव मस्तिष्क में पुनर्जन्म की मेमोरी रह सकती है। जो कुछ वर्षो बाद पिछले जन्म की मेमोरी धीरे धीरे कम हो जाती है। एक पुनर्जन्म से जुड़ी एक घटना है। जहां जन्मे एक बच्चे ने 4 साल की उम्र में अपने पिता को बताया कि उसका घर दूसरे गांव में है, जहां उसके बीवी बच्चे भी हैं। पिछले जन्म में उसके चचेरे भाइयों ने विवाद के चलते खेत में उसकी हत्या कर दी थी। जब उस बच्चे के पिता ने उनके बताए आधार पर खोजबीन की तो ये बात सच निकलीं। अपनी मां और बहनों के अलावा अपने उन भाइयों को भी पहचान लिया, जिनका जन्म सोमदत्त के मरने के बाद हुआ था। उत्सुकतावश लोगों ने वीर से पूछा कि तुम अपने इन भाइयों को कैसे पहचानते हो। जिनका जन्म तो तुम्हारी मृत्यु के बाद हुआ था। तब वीर ने बताया कि मृत्यु के बाद उसे 9 साल तक कोई शरीर नहीं मिला तो वह पूर्वजन्म के घर के पास ही प्रेत बनकर पेड़ पर रहने लगा। जब प्यास लगती तो कुंए से पानी पी लेता और भूख लगने पर रसोई से रोटी खा लेता था। तब प्रेत रूप में ही उसने अपने उन भाइयों को देखा था। यह सब सुनकर सभी लोग हैरान थे।  हमारे धार्मिक ग्रंथ तो पुनर्जन्म की बातों को और कर्मों के अनुसार नया जीवन मिलने की बातें को स्पष्ट रूप से कहते रहे हैं। पुनर्जन्म के हजारों उदाहरण सामने आए है।

गीता और गरुड़ पुराण में इस विषय पर काफी कुछ कहा गया है। महाभारत की एक घटना भी पुनर्जन्म की अवधारणा को मजबूत करता है। यह घटना महाभारत के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति भीष्म पितामह की है जिन्हें अपने 6 जन्मों की बातें याद थी।  एक जानकारी के मुताबिक पलक झपकने से तीन गुना तेज याद आती है घटनाएँ के बारे में भी खबर पढ़ने को आयी थी। स्मृतियाँ सिमेटिक -भाषा के तथ्य समझने पर व एपिसोडिक – व्यक्ति विशेष के लिए खास महत्व रखती है। रटंत क्रिया से भी याददाश्त मजबूत होती है। चिंतनीय प्रश्न यह उठता है कि क्या इंसान के मरने के बाद स्मृतियाँ अमर होती है ?पुनर्जन्म के उदाहरण में तो स्मृतियाँ पहचान का आधार बनाती कई घटनाएँ पढ़ने,सुनने में आती रही है। कई लोगों को पिछले जन्म की घटनाएं याद रहती है। छोटी उम्र में पुनर्जन्म की बातें ज्यादा याद रहती। फिर बड़े होने पर कम हो जाती है। पुनर्जन्म पर कई फ़िल्में, सीरियल भी बने है।  पिछले वर्ष सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हरियाणा का ढाई साल का बालक अपने पूर्वजन्म की घटना जिसके कारण वो  रिश्तेदारों,जगहों को पहचानता है। सवाल उठता है की क्या इंसान के मरने के बाद स्मृति अमर होती है ?पुनर्जन्म के उदाहरण में तो स्मृति पहचान का आधार बनाती कई घटनाएँ पढ़ने,सुनने में आती रही है। कई लोगों को पिछले जन्म की घटनाएं याद रहती है। छोटी उम्र में पुनर्जन्म की बातें ज्यादा याद रहती। फिर बड़े होने पर कम हो जाती है। पुनर्जन्म में याददाश्त भी एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश क्या होती होगी?। ये अभी तक विस्तृत रूप से मालूम नहीं है। आज भी कई बच्चे ऐसे जिनकी जनरल नॉलेज की मेमोरी बहुत ही तगड़ी है और इसी प्रतिभा के कारण गिनीज बुक रिकार्ड में भी उनका नाम दर्ज  है। ज्योतिष और विज्ञान भी स्मृति अमर और शरीर ख़त्म होने की बात कहता है। पुनर्जन्म में मेमोरी ट्रांसफर भी शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश होती होगी। इसी प्रकार से मनुष्य के शरीर में हवा लगना यानि भूत,प्रेत चुड़ैल आदि का लगना जिसको ओझा, जानकार द्धारा उतारा भी जाता है। कोई इसी मानसिक रोग मानता है किंतु बाधा पीड़ित इंसान की बाधा  होने से बोली भी बदल जाती है। जिसे उसे कभी भी पढ़ी, बोली, सुनी नहीं होती है। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले है। दाह संस्कार के समय कपाल क्रिया किये जाने के प्रति क्या धारणा के पीछे क्या पुनर्जन्म ,मैमोरी का आधार  है ? ये अभी तक विस्तृत रूप से मालूम नहीं है। प्राचीन ग्रंथों, पुराणों में अमरता प्राप्त का उदाहरण भी पढ़ने को मिलते है। मस्तिष्क की क्रियाओं -प्रतिक्रियाओं के गूढ़ रहस्य को सुलझाने में और भी शोध की आवश्यकता है। ताकि पुनर्जन्म से स्मृति कैसे अमर बनी रहती ज्ञात हो सके।

— संजय वर्मा “दृष्टि”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच